नई दिल्ली(GPNewsBihar Desk): कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर ने रायसीना डायलॉग 2025 में स्वीकार किया कि रूस-यूक्रेन युद्ध (2022) को लेकर उन्होंने जो रुख अपनाया था, वह गलत था। उन्होंने कहा कि अब उन्हें अपनी उस स्थिति पर अफसोस है और यह महसूस होता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कूटनीति सही थी।

 

पहले आलोचक, अब तारीफ

फरवरी 2022 में जब रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध छिड़ा, तब भारत ने तटस्थ रुख अपनाया था। उस समय शशि थरूर भारत सरकार के स्टैंड के सबसे मुखर आलोचकों में से एक थे। उन्होंने संसद में कहा था कि भारत का इस मुद्दे पर चुप रहना यूक्रेन और उसके समर्थकों के लिए निराशाजनक होगा। उन्होंने सरकार की आलोचना करते हुए कहा था कि भारत को रूस के कदम की निंदा करनी चाहिए क्योंकि यह संयुक्त राष्ट्र चार्टर का उल्लंघन है।

 

अब, तीन साल बाद रायसीना डायलॉग में उन्होंने कहा, "मुझे अब अपनी उस सोच पर शर्मिंदगी महसूस होती है। मैं अकेला था जिसने संसद में सरकार के रुख की आलोचना की थी, लेकिन अब लगता है कि मैं ही गलत था।"

 

पीएम मोदी की रणनीति की सराहना

शशि थरूर ने आगे स्वीकार किया कि भारत ने जो संतुलित नीति अपनाई, वह बेहद प्रभावी साबित हुई। उन्होंने कहा, "तीन साल बाद मुझे लगता है कि मैं ही बेवकूफ बना। भारत के पास ऐसा प्रधानमंत्री है, जो दो हफ्तों के अंतराल में यूक्रेन और रूस, दोनों के राष्ट्रपतियों से मिल सकता है।"

 

उन्होंने कहा कि भारत की निष्पक्षता ने उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शांति वार्ता में अहम भूमिका निभाने का मौका दिया।

 

क्या भारत यूक्रेन में शांति सैनिक भेजेगा?

थरूर से यह भी पूछा गया कि क्या भारत युद्धग्रस्त यूक्रेन में शांति रक्षक (पीसकीपर्स) भेजेगा? इस पर उन्होंने कहा कि यह निर्णय कई कारकों पर निर्भर करेगा। उन्होंने कहा, "अगर दोनों पक्ष शांति के लिए तैयार होते हैं और अंतरराष्ट्रीय समर्थन मिलता है, तो भारत इस पर विचार कर सकता है।"

 

उन्होंने यह भी बताया कि भारत का शांति अभियानों में ऐतिहासिक योगदान रहा है। देश ने अब तक 49 शांति अभियानों में हिस्सा लिया और दुनिया भर में ढाई लाख से अधिक शांति सैनिक तैनात किए हैं।

 

थरूर के बदले रुख का क्या मतलब?

शशि थरूर का यह बयान ऐसे समय आया है, जब भारत ने रूस-यूक्रेन संकट में संतुलन और कूटनीति पर जोर दिया है। उनके इस बदलाव से साफ है कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में बदलते समीकरणों को लेकर उन्होंने अपनी सोच पर पुनर्विचार किया है।

 

निष्कर्ष

शशि थरूर की स्वीकृति और पछतावा यह दिखाता है कि भारत की विदेश नीति व्यावहारिक और मजबूत साबित हुई है। भारत का संतुलित दृष्टिकोण उसे वैश्विक शांति प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की स्थिति में ले आया है।