क्या वाकई "बिहारी टॉयलेट साफ करने के लिए है?"

बिहार में जारी महागठबंधन की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ अब अपने अंतिम चरण में पहुंच चुकी है। यात्रा का समापन 1 सितंबर को पटना में होगा। इस यात्रा का मकसद भाजपा और एनडीए पर बिहार में मतदाता सूची से नाम काटने का आरोप लगाना और जनता को एकजुट करना है। यात्रा में कांग्रेस नेता राहुल गांधी और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव लगातार शामिल रहे हैं। इस बीच 27 अगस्त को यात्रा में एक नया मोड़ तब आया जब तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन भी इसमें शामिल हुए।

स्टालिन का बिहार आगमन महागठबंधन की एकता का संदेश देने के लिए था, लेकिन उनके आने से बिहार की सियासत गरमा गई है। भाजपा ने इसे बिहार का अपमान करार दिया है, वहीं महागठबंधन इसे ‘झूठ का पर्दाफाश’ बता रहा है।

 

स्टालिन के पुराने बयान बने हथियार

स्टालिन की पार्टी डीएमके (DMK) के कई नेताओं ने अतीत में बिहारियों पर विवादित बयान दिए हैं। दिसंबर 2023 में DMK सांसद दयानिधि मारन का एक बयान चर्चा में आया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि “उत्तर प्रदेश और बिहार से आने वाले लोग तमिलनाडु में कंस्ट्रक्शन का काम करते हैं और टॉयलेट साफ करते हैं, जबकि अंग्रेजी जानने वाले हमारे बच्चे आईटी सेक्टर में मोटी सैलरी पाते हैं।”

इस बयान का विरोध उस समय आरजेडी ने भी किया था। तेजस्वी यादव ने कहा था कि “अगर बिहार और यूपी के लोग न जाएं तो दूसरे राज्यों की अर्थव्यवस्था ठप हो जाएगी।” ऐसे में स्टालिन की एंट्री को भाजपा ने बिहारियों के आत्मसम्मान पर चोट बताया।

 

जनता की प्रतिक्रिया: “बिहार को गाली देने वालों को बुलाना गलत”

यात्रा में शामिल लोगों के बीच भी स्टालिन को बुलाने पर असंतोष झलक रहा है।

  • मुजफ्फरपुर के दयानंद शर्मा कहते हैं, “वोटर अधिकार यात्रा सही है, लेकिन राहुल और तेजस्वी ऐसे लोगों को शामिल कर रहे हैं जो बिहारियों को गाली देते हैं।”
  • मोहम्मद जुबैद का कहना है, “राहुल और तेजस्वी हमारे नेता हैं, लेकिन स्टालिन जैसे लोगों से दूरी बनानी चाहिए।”
  • दरभंगा के राजेश कुमार ने कहा, “बिहारियों का अपमान करने वालों को बुलाना सही नहीं है। महागठबंधन को सोचना चाहिए।”

इस तरह के बयानों से साफ है कि स्टालिन को बुलाने के फैसले ने बिहार के एक तबके को नाराज कर दिया है।

 

बीजेपी का हमला: “स्टालिन बिहार का अपमान”

स्टालिन की बिहार यात्रा को भाजपा ने हाथों-हाथ लिया।

  • तमिलनाडु भाजपा प्रवक्ता नारायण तिरुपति ने कहा, “DMK के लोग बिहारियों को अनपढ़ और शौचालय साफ करने वाला कहते हैं। अब वोट मांगने बिहार आ रहे हैं। पहले बिहार से माफी मांगें।”
  • बिहार के डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी ने कहा, “स्टालिन सनातन धर्म और बिहार के लोगों का अपमान करते हैं। लालू परिवार उन्हें संरक्षण दे रहा है।”
  • दरभंगा सांसद गोपाल जी ठाकुर बोले, “राहुल और तेजस्वी ने बिहार का अपमान करने वाले को मंच दिया है। जनता उन्हें माफ नहीं करेगी।”

 

कांग्रेस और RJD का बचाव

महागठबंधन ने स्टालिन को बुलाने को सही ठहराया।

  • कांग्रेस मीडिया सेल इंचार्ज संजीव सिंह ने कहा, “INDIA ब्लॉक के सभी नेता इस यात्रा में शामिल होंगे। भाजपा झूठ फैला रही है कि तमिलनाडु के लोग बिहारियों से नफरत करते हैं। स्टालिन की मौजूदगी से यह झूठ बेनकाब हुआ है।”
  • RJD नेता शैलेन्द्र प्रताप ने कहा, “स्टालिन महागठबंधन के नेता हैं। NDA की हताशा साफ दिख रही है।”

 

प्रियंका गांधी का प्रवेश: महिला और मिथिला वोटरों को साधने की कोशिश

स्टालिन के साथ 27 अगस्त को प्रियंका गांधी भी यात्रा में शामिल हुईं। जिस दिन वे आईं, उस दिन बिहार में तीज का त्योहार मनाया जा रहा था। यह कदम सोची-समझी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।
सीनियर जर्नलिस्ट प्रियदर्शी रंजन कहते हैं, “प्रियंका गांधी की एंट्री तीन कारणों से थी—मिथिला का क्षेत्र, महिला वोटर और मंदिर राजनीति। यह NDA के गढ़ में सेंध लगाने की कोशिश है।”

प्रियंका गांधी ने दरभंगा से यात्रा की शुरुआत की और राहुल गांधी के साथ बुलेट बाइक पर रैली में शामिल हुईं। मिथिलांचल, सुपौल और मधुबनी में उन्हें देखने के लिए बड़ी भीड़ जुटी।

  • दरभंगा की मेहरुन्निसा ने कहा, “प्रियंका गांधी मेहनत कर रही हैं। हम उनका स्वागत करते हैं।”
    हालांकि एक्सपर्ट्स का मानना है कि यह कदम थोड़ा देर से उठाया गया। रोहतास के सीनियर जर्नलिस्ट अजित कुमार कहते हैं, “अगर प्रियंका शुरुआत से शामिल होतीं, तो असर और गहरा होता।”

 

भीड़ और वोट में अंतर

यात्रा के दौरान राहुल गांधी, तेजस्वी यादव और प्रियंका गांधी को देखने के लिए बड़ी भीड़ जुट रही है। लेकिन सवाल है कि क्या यह भीड़ वोट में बदलेगी?
सीनियर जर्नलिस्ट संजय कौशिक का कहना है, “गांधी परिवार का आकर्षण है, इसलिए भीड़ आती है। लेकिन बिहार का वोटर बहुत जागरूक है। वह चेहरे और मुद्दों, दोनों को तौलता है।”

 

निष्कर्ष:

महागठबंधन की वोटर अधिकार यात्रा ने बिहार की राजनीति को एक बार फिर गरमा दिया है। स्टालिन की एंट्री जहां महागठबंधन के लिए एकता का संदेश देने का प्रयास है, वहीं यह भाजपा के लिए नया हथियार बन गई है। प्रियंका गांधी की मौजूदगी से महिला और मिथिला वोटरों को साधने की कोशिश साफ नजर आई। अब देखना होगा कि ये रणनीति चुनावी नतीजों में कितनी कारगर साबित होती है।