बिहार में मतदाता सूची
संशोधन पर विवाद: आधार, प्रमाणपत्र और मतदाताओं की
उलझन
बिहार में इस समय
विशेष
गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) को लेकर ज़बरदस्त बहस और विवाद छिड़े
हुए हैं। लाखों मतदाताओं के नाम मतदाता सूची (Electoral Roll) से गायब कर दिए गए हैं, जिनमें से कई ऐसे लोग भी शामिल हैं जो
वर्षों से वोट डालते आ रहे थे। इस प्रक्रिया के दौरान बूथ लेवल ऑफिसर (BLO)
द्वारा अतिरिक्त
दस्तावेज़ माँगे जा रहे हैं, जबकि मतदाता पहले ही आधार कार्ड प्रस्तुत कर
चुके हैं। प्रश्न उठता है कि क्या यह प्रक्रिया उचित है? क्या केवल आधार पर्याप्त है या मैट्रिक
प्रमाणपत्र जैसे अन्य दस्तावेज़ भी अनिवार्य हैं? आइए इस पूरे मुद्दे को विस्तार से
समझते हैं।
सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप
अगस्त 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर
अंतरिम आदेश दिया। अदालत ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि जिन लोगों के नाम
ड्राफ्ट रोल से हटाए गए हैं, उनकी बूथ-वार सूची और हटाने का कारण वेबसाइट
तथा स्थानीय कार्यालयों में सार्वजनिक किया जाए। साथ ही, कोर्ट ने यह भी कहा कि जिनका नाम हटाया
गया है, वे Form-6 के साथ आधार कार्ड की प्रति लगाकर दावा कर सकते
हैं।
यह एक महत्वपूर्ण बिंदु है, क्योंकि पहले आधार को नागरिकता का
अंतिम प्रमाण नहीं माना जाता था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि कम से कम नाम
वापस जुड़वाने या दावा करने की प्रक्रिया में आधार को स्वीकार किया जाए।
चुनाव आयोग की गाइडलाइन और दस्तावेज़ों
की सूची
चुनाव आयोग (ECI) ने 24 जून 2025 को SIR की गाइडलाइन जारी की थी। इसमें 11
तरह के
दस्तावेज़ सूचीबद्ध किए गए थे, जिनमें से कोई एक दस्तावेज़ दावे/आपत्ति
के लिए दिया जा सकता है। ये दस्तावेज़ हैं:
- केंद्रीय/राज्य सरकार/PSU के कर्मचारी का पहचान पत्र या
पेंशन आदेश
- सरकार/बैंक/पोस्ट ऑफिस/LIC/PSU द्वारा जारी पहचान पत्र (1987
से
पहले)
- जन्म प्रमाणपत्र
- पासपोर्ट
- मैट्रिकुलेशन या शैक्षिक प्रमाणपत्र
- स्थायी निवास प्रमाणपत्र
- जंगल अधिकार प्रमाणपत्र
- जाति प्रमाणपत्र (SC/ST/OBC)
- NRC (जहाँ लागू हो)
- परिवार रजिस्टर (सरकारी प्राधिकरण से)
- सरकारी जमीन/घर आवंटन प्रमाणपत्र
स्पष्ट है कि आयोग ने केवल आधार कार्ड
को इस सूची में प्रमुख रूप से शामिल नहीं किया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने बाद में
राहत देते हुए आधार को भी मान्य कर दिया।
BLO की भूमिका और मतदाताओं की दिक़्क़तें
BLO का काम केवल फॉर्म लेना और रिकॉर्ड
दर्ज करना है। उसे यह तय करने का अधिकार नहीं है कि कौन-सा दस्तावेज़ पर्याप्त है
और कौन नहीं। लेकिन ज़मीनी स्तर पर हो रहा यह है कि BLO कई बार मतदाता से
“मैट्रिक
प्रमाणपत्र” या अतिरिक्त काग़ज़ माँगते हैं और कहते हैं कि यदि ये नहीं
दिए गए तो “नाम कट जाएगा।”
यह स्थिति मतदाताओं को भ्रमित कर रही
है। जिन लोगों का नाम पहले से सूची में है और जो वर्षों से वोट डालते आ रहे हैं,
उन्हें अचानक यह
डर दिखाया जा रहा है कि अगर वे नया प्रमाणपत्र नहीं देंगे तो उनका नाम हट सकता है।
आधार बनाम मैट्रिक प्रमाणपत्र का विवाद
- आधार कार्ड: पहचान और
पते का प्रमाण है, लेकिन इसे नागरिकता का अंतिम प्रमाण नहीं माना जाता। इसके
बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने SIR के दावे/आपत्ति में आधार को स्वीकार करने
का निर्देश दिया है।
- मैट्रिकुलेशन प्रमाणपत्र: इसे उम्र और कभी-कभी जन्म-स्थान के प्रमाण के रूप में उपयोग
किया जाता है। BLO अक्सर इसी पर ज़ोर देते हैं।
सवाल यह है कि जब सुप्रीम कोर्ट ने
आधार को स्वीकार कर लिया है, तो BLO केवल मैट्रिक प्रमाणपत्र की मांग क्यों कर रहे
हैं? इसका
कारण है — आयोग के आंतरिक निर्देशों की अलग-अलग व्याख्या और अधिकारियों की
अतिरिक्त सतर्कता।
क्यों हो रही है इतनी सख़्ती?
- 65 लाख नाम हटाए जाने का विवाद: बिहार में इतने बड़े पैमाने पर नाम हटाए गए कि मामला सुप्रीम
कोर्ट तक पहुँचा।
- डुप्लीकेट और फर्जी नाम की जाँच: आयोग चाहता है कि मतदाता सूची शुद्ध और बिना फर्जी नामों के
बने।
- सुप्रीम कोर्ट की निगरानी: कोर्ट ने सीधे आदेश दिए हैं, जिससे अधिकारी ज़्यादा सतर्क हो
गए हैं।
- डेटा एरर: कई बार नाम
की वर्तनी, उम्र या पते की गड़बड़ी के कारण genuine मतदाताओं को भी संदिग्ध मान लिया
जाता है।
पहले से जुड़े मतदाताओं का हक़
यदि आपका नाम पहले से मतदाता सूची में
है और आप वर्षों से वोट डाल रहे हैं, तो केवल “मैट्रिक सर्टिफिकेट न देने” की वजह से
आपका नाम नहीं हटाया जा सकता। नाम तभी हट सकता है जब:
- व्यक्ति मृत हो,
- वह किसी दूसरे क्षेत्र में स्थानांतरित हो गया हो, या
- वह पंजीकरण के योग्य न हो (जैसे आयु कम होना, विदेशी
नागरिक होना आदि)।
इसलिए BLO द्वारा आधार जमा करने के बाद भी “नाम
कट जाएगा” कहना पूरी तरह अनुचित और गैर-कानूनी है।
मतदाताओं को क्या करना चाहिए?
- लिखित आपत्ति दें: यदि BLO अतिरिक्त दस्तावेज़ माँग रहा है, तो ERO/DEO
को
लिखित आवेदन दें कि आपने Aadhaar पहले ही जमा किया है और सुप्रीम कोर्ट ने
इसे स्वीकार्य माना है।
- आधिकारिक acknowledgment लें:
Form-6 भरने
के बाद उसका पावती रसीद/नंबर अवश्य रखें।
- वैकल्पिक दस्तावेज़ तैयार रखें: अगर आपके पास मैट्रिकुलेशन प्रमाणपत्र या जन्म प्रमाणपत्र है,
तो
उसकी प्रति भी तैयार रखें। इससे विवाद से बचा जा सकता है।
- सूची की जाँच करें: अपना नाम NVSP या Voter Helpline ऐप पर जांचें। यदि नाम ड्राफ्ट
सूची से हट गया है, तो समय रहते आपत्ति दर्ज कराएँ।
निष्कर्ष
बिहार में SIR की प्रक्रिया ने मतदाताओं में भारी
असमंजस और बेचैनी पैदा कर दी है। वर्षों से वोट डालने वाले लोगों को अचानक नए-नए
दस्तावेज़ जमा करने को कहा जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश साफ़ कहते हैं कि आधार
कार्ड पर्याप्त है और केवल इसके आधार पर नाम काटा नहीं जा
सकता। BLO द्वारा
“मैट्रिक प्रमाणपत्र दो, नहीं तो नाम कटेगा” कहना नियमों के विपरीत है।
मतदाताओं को चाहिए कि वे अपने अधिकारों
के प्रति सजग रहें, समय
रहते लिखित रूप से आपत्ति दर्ज करें और सुनिश्चित करें कि उनका नाम मतदाता सूची
में बना रहे। आखिरकार, लोकतंत्र
में मतदान का अधिकार केवल कागज़ का खेल नहीं,
बल्कि
नागरिक की असली पहचान है।
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