डॉ. गौतम पाण्डेय का विश्लेषण:

1 सितंबर, 2025 को शंघाई सहयोग संगठन (SCO) का दो दिवसीय शिखर सम्मेलन समाप्त हुआ और इसने वैश्विक कूटनीति के पन्नों पर एक नया अध्याय लिख दिया है। यह शिखर सम्मेलन सिर्फ एक नियमित बैठक नहीं थी, बल्कि तीन महाशक्तियोंभारत, रूस और चीनके नेताओं का एक ऐसा संगम था, जिसने दुनिया को एक स्पष्ट संदेश दिया: वैश्विक शक्ति संतुलन अब बदल रहा है।

 

तियानजिन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और राष्ट्रपति शी जिनपिंग का एक मंच पर आना अपने आप में एक अभूतपूर्व घटना थी। यह दृश्य केवल राजनयिक शिष्टाचार का हिस्सा था, बल्कि एक गहरा रणनीतिक संकेत भी था कि ये राष्ट्र मिलकर एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की नींव रख रहे हैं।

 

भारत की कूटनीतिक जीत: आतंकवाद पर चीन का रुख बदला

इस शिखर सम्मेलन से भारत को मिली सबसे बड़ी जीत आतंकवाद के मुद्दे पर थी। लंबे समय से भारत ने सीमा पार आतंकवाद और इसके दोहरे मानकों का मुद्दा उठाया है, लेकिन पाकिस्तान के साथ संबंधों के कारण चीन अक्सर इस पर चुप्पी साधे रहता था। हालांकि, इस बार तस्वीर अलग थी।

 

सूत्रों के मुताबिक, भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने SCO के एजेंडे में आतंकवाद के खिलाफ एक मजबूत और साझा रुख अपनाने पर जोर दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि संयुक्त घोषणापत्र में केवल आतंकवाद के सभी रूपों की निंदा की गई, बल्कि अल-कायदा और उससे जुड़े संगठनों के खिलाफ लड़ने की SCO की प्रतिबद्धता को भी दोहराया गया। यह अपने आप में एक बड़ी सफलता थी, क्योंकि पाकिस्तान के विदेश मंत्री की मौजूदगी में चीन ने भी इस पर सहमति जताई। यह घटना हाल ही में हुए 'ऑपरेशन सिंदूर' और पहलगाम में हुए हमले के बाद पाकिस्तान के लिए एक बड़ा कूटनीतिक झटका है।

 

यह उस घटना से बिलकुल उलट था, जब कुछ महीने पहले भारत के रक्षा मंत्री ने चीन में मीटिंग मिनट्स पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया था क्योंकि उसमें आतंकवाद का जिक्र नहीं था। इस बार चीन का रुख बदलना साफ दिखाता है कि भारत की कूटनीतिक स्थिति मजबूत हुई है और वह अपने मुद्दों पर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर दबाव बनाने में कामयाब हो रहा है।

 

भारत-चीन संबंधों में जमी बर्फ पिघली?

प्रधानमंत्री मोदी की यह चीन यात्रा सात साल बाद हुई, जब भारत और चीन के बीच सीमा पर तनाव अपने चरम पर था। इस यात्रा को लेकर भारतीय मीडिया और विपक्ष में काफी चर्चा थी। आलोचकों का मानना था कि यह सिर्फ एक प्रतीकात्मक यात्रा होगी और इससे कोई ठोस परिणाम नहीं निकलेंगे। लेकिन, विश्लेषकों का मानना है कि इस यात्रा ने दोनों देशों के बीच संवाद का रास्ता खोला है।

 

शिखर सम्मेलन से इतर प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच अनौपचारिक मुलाकातें हुईं। हालांकि किसी द्विपक्षीय बैठक की आधिकारिक घोषणा नहीं हुई, लेकिन दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य करने और सीमा पर शांति बनाए रखने के महत्व पर चर्चा की। इस बातचीत ने रिश्तों को सामान्य करने की दिशा में एक कदम बढ़ाया है। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने बाद में यह भी संकेत दिया कि भारत-चीन व्यापार संबंधों को पटरी पर लाने पर भी चर्चा हुई है। यह चीन के साथ भारत की 'बहु-संरेखण' (multi-alignment) विदेश नीति का एक अहम हिस्सा है, जहाँ भारत अपने हितों को साधने के लिए विभिन्न गुटों के साथ काम करता है।

 

मोदी-पुतिन की गर्मजोशी और RIC तिकड़ी का भविष्य

SCO शिखर सम्मेलन में सबसे ज्यादा ध्यान प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति पुतिन की गर्मजोशी ने खींचा। दोनों नेताओं को एक ही कार साझा करते हुए देखा गया, और बाद में पीएम मोदी ने खुद ट्वीट करके इसे 'जानदार बातचीत' बताया। यह दृश्य यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों और राजनयिक अलगाव के प्रयासों के बीच एक मजबूत संदेश था।

 

यह मुलाकात दर्शाती है कि भारत और रूस के संबंध केवल ऐतिहासिक हैं, बल्कि रणनीतिक रूप से भी महत्वपूर्ण हैं। रूस भारत को एक भरोसेमंद और स्वतंत्र साझेदार के रूप में देखता है। यह संबंध इस बात का भी प्रमाण है कि भारत बाहरी दबावों के आगे नहीं झुकेगा और अपने राष्ट्रीय हितों के अनुसार अपनी विदेश नीति को बनाए रखेगा।

 

कुछ विश्लेषकों ने इस त्रि-पक्षीय मुलाकात को RIC (रूस-इंडिया-चाइना) सहयोग के पुनरुद्धार के रूप में भी देखा है। उनका मानना है कि इस तिकड़ी में वह क्षमता है जो अमेरिका-केंद्रित विश्व व्यवस्था को चुनौती दे सकती है। यह सहयोग सैन्य, आर्थिक और कूटनीतिक क्षेत्रों में एक नया शक्ति केंद्र बना सकता है।

 

डॉलर की बादशाहत को चुनौती?

SCO शिखर सम्मेलन में एक और महत्वपूर्ण मुद्दा वैश्विक अर्थव्यवस्था से जुड़ा था। राष्ट्रपति जिनपिंग ने "एक मल्टीपोलर दुनिया" और "नई ग्लोबल गवर्नेंस" की बात की, जबकि राष्ट्रपति पुतिन ने "असली बहुपक्षवाद" पर जोर दिया। ये सभी बयान सीधे तौर पर अमेरिकी डॉलर और यूरो के प्रभुत्व वाली वर्तमान वित्तीय व्यवस्था को चुनौती देते हैं।

 

SCO सदस्य देश, जो दुनिया की आबादी का लगभग 40% और वैश्विक अर्थव्यवस्था का 20% से अधिक हिस्सा हैं, अब अपनी अर्थव्यवस्थाओं को डॉलर पर निर्भरता से मुक्त करने की दिशा में काम कर रहे हैं। इस सम्मेलन में व्यापार के लिए अपनी-अपनी राष्ट्रीय मुद्राओं के उपयोग और एक साझा भुगतान प्रणाली विकसित करने पर भी चर्चा हुई। यदि यह पहल सफल होती है, तो यह वैश्विक वित्तीय परिदृश्य में एक बड़ा बदलाव ला सकती है और पश्चिमी देशों की आर्थिक शक्ति को कम कर सकती है।

 

क्या यह सिर्फ दिखावा था?

भले ही विपक्ष इस सम्मेलन को 'फोटो खिंचवाने' तक सीमित बताए, लेकिन कूटनीति में प्रतीकात्मकता का भी गहरा महत्व होता है। यह सिर्फ एक मुलाकात नहीं थी, बल्कि दुनिया को दिखाया गया एक शक्ति प्रदर्शन था। इस सम्मेलन ने भारत को एक महत्वपूर्ण वैश्विक खिलाड़ी के रूप में स्थापित किया जो किसी भी गुट का हिस्सा नहीं है, बल्कि अपने राष्ट्रीय हितों के लिए सभी के साथ काम करता है।

 

यह SCO शिखर सम्मेलन इस बात का प्रमाण है कि वैश्विक शक्ति अब केवल एक केंद्र पर केंद्रित नहीं है। भारत, रूस और चीन मिलकर एक ऐसी दुनिया का निर्माण कर रहे हैं जहाँ शक्ति का संतुलन अधिक वितरित होगा। यह एक नए अध्याय की शुरुआत है, जिसकी गूंज आने वाले दशकों तक सुनाई देगी।

क्या आप इस बदलती हुई विश्व व्यवस्था को एक सकारात्मक कदम मानते हैं? अपने विचार कमेंट्स में ज़रूर बताएं।