डॉ. गौतम पाण्डेय का विश्लेषण
बचपन में हमारे बड़े-बुजुर्ग
एक देहाती कहावत सुनाया करते थे, "डॉट डॉट डॉट को सुख बलाय"। इसका मतलब है
कि कुछ लोगों को सुख हजम नहीं होता। आज उस कहावत का जिक्र करना उचित नहीं, लेकिन इसका
सार यही है कि कुछ लोगों को इज्जत रास नहीं आती। वे किसी चीज के महत्व को समझे बिना
ही अनावश्यक प्रतिक्रिया देने लगते हैं। आज का हमारा वीडियो इसी मुद्दे पर आधारित है।
अब देखिए एक ताजा मामला –
केंद्र सरकार ने फैसला किया है कि भारत से एक प्रतिनिधिमंडल विदेशों में भेजा जाएगा, जो अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान को बेनकाब करेगा। इस डेलिगेशन में सभी पार्टियों के नेता होंगे – एक सराहनीय कदम। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने सभी दलों से बात की और सबने सहमति भी दी।
इसमें खास तौर पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर, जो UN में भारत का चेहरा रह चुके हैं, और AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, जो अपनी बेबाक और तार्किक शैली के लिए जाने जाते हैं – दोनों को शामिल किया गया है।
अब आप कहेंगे कि जब सब सहमत हैं, तो दिक्कत क्या है?
दिक्कत है केरल कांग्रेस की सोच में।
उन्होंने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया – “मोदी और
जयशंकर ने
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी विश्वसनीयता खो
दी है,
इसलिए शशि थरूर को
चुना गया।”
भाई, ये इज्जत मिली है या जलन?
हमें पूरा भरोसा है कि शशि थरूर विदेशों में केवल देश का पक्ष रखेंगे, ना कि कांग्रेस का। लेकिन कांग्रेस का इतिहास गवाह है कि कुछ नेता विदेशों में भारत को नीचा दिखाने से नहीं चूकते। राहुल गांधी के कई बयान इसका उदाहरण हैं, जिनका पाकिस्तान तक ने फायदा उठाया।
ऐसे में सवाल उठता है – क्या कांग्रेस पर भरोसा किया जा सकता है?
वहीं ओवैसी साहब की बात करें तो वह देश और सरकार – दोनों की गरिमा का सम्मान करते हैं। उम्मीद है कि वो इस मिशन को पूरी गंभीरता से अंजाम देंगे।
सूत्रों के मुताबिक इस डेलिगेशन में लगभग 40 सांसद होंगे, जिन्हें 7-8 के समूह में 5 अलग-अलग देशों में भेजा जाएगा। ये दौरा 22 मई से शुरू होने की संभावना है।
विश्लेषण:
भारत सरकार द्वारा बहुपार्टीय प्रतिनिधिमंडल को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भेजने की योजना यह एक संवेदनशील और सामयिक राजनीतिक मुद्दा है
सरकार की यह पहल सराहनीय है क्योंकि यह राष्ट्रीय एकता और साझा कूटनीति को दर्शाता है। शशि थरूर और ओवैसी जैसे नेताओं को शामिल करना सरकार की परिपक्वता और समझदारी का प्रतीक है। लेकिन कांग्रेस की केरल इकाई का बयान इस सकारात्मक प्रयास को निजी राजनीतिक बढ़त में बदलने की कोशिश लगता है। ऐसे बयानों से न केवल सरकार बल्कि देश की छवि भी प्रभावित होती है।
निष्कर्ष:
सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल
को भेजने का उद्देश्य यह भी है कि दूसरी दुनिया के लोग/नेता, जो यह सोचते हैं कि भारत
में सभी राजनीतिक दल अलग-अलग हैं, उन्हें ये संदेश देना, कि हम भारत में चाहे कुछ भी
हों लेकिन जब बात राष्ट्रहित की आती है तो हम सभी एक हैं।
डेलिगेशन में शामिल सभी नेताओं को पार्टी राजनीति से ऊपर उठकर केवल भारत के हितों को ध्यान में रखना होगा। साथ ही, कांग्रेस को आत्ममंथन करना होगा कि क्या वह अब भी एक जिम्मेदार राष्ट्रीय पार्टी की भूमिका निभा रही है या केवल तात्कालिक राजनीतिक बयानबाज़ी में उलझी है।
जय हिन्द।
वीडियो देखने के लिए यहाँ क्लिक करें: https://youtu.be/jfylLYGgChY
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