पटना: बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची की सफाई अभियान (Special Intensive Revision – SIR) ने बड़ा राजनीतिक भूचाल ला दिया है। चुनाव आयोग के विशेष सत्यापन अभियान में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है— राज्यभर में लगभग 64 लाख मतदाताओं के नाम सूची से हटाए जाने की संभावना है।

 

आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, जांच के दौरान 22 लाख मृत मतदाता, 35 लाख पलायन या लापता मतदाता, 7 लाख डुप्लिकेट नाम और 1.2 लाख ऐसे मतदाता मिले जिन्होंने निर्धारित समय में फॉर्म जमा नहीं किया। इन सभी को अंतिम सूची से हटाने की प्रक्रिया पर विचार हो रहा है।

 

चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि यह पूरी कार्रवाई पारदर्शिता और सटीकता सुनिश्चित करने के लिए की जा रही है। आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया:
"हमारा उद्देश्य है कि हर वोट वैध हो और हर वैध नागरिक को मतदान का अधिकार मिले। जो नाम संदिग्ध पाए गए हैं, उन्हें उचित अवसर देकर ही हटाया जाएगा।"

इस अभियान ने राजनीतिक हलकों में खलबली मचा दी है। विपक्षी दलों ने आरोप लगाया है कि यह कार्रवाई "विशेष वर्गों के मतदाताओं को हटाने की कोशिश" है, जबकि सत्तारूढ़ दल का कहना है कि यह कदम चुनाव को निष्पक्ष बनाने के लिए आवश्यक है

 

सिर्फ यही नहीं, बीएलओ (Booth Level Officers) की जांच में यह भी पाया गया कि सूची में कई ऐसे मतदाता शामिल हैं, जिनकी नागरिकता संदिग्ध है। इनमें कुछ लोग पड़ोसी देशों नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार से संबंधित पाए गए हैं। इन सभी को अपनी पहचान और नागरिकता साबित करने के लिए 45 दिन का समय दिया गया है। यदि वे प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर पाते, तो उनके नाम स्वतः सूची से हटा दिए जाएंगे।

 

आयोग ने यह भी बताया कि यह प्रक्रिया सितंबर 2025 तक पूरी कर ली जाएगी, ताकि अक्टूबर से मतदाता सूची का अंतिम प्रकाशन हो सके। विधानसभा चुनाव नवंबर 2025 में होने की संभावना है, इसलिए सभी जिलाधिकारियों और निर्वाचन अधिकारियों को तेजी से काम पूरा करने के निर्देश दिए गए हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह प्रक्रिया चुनावी समीकरणों को बड़े पैमाने पर प्रभावित कर सकती है। 64 लाख मतदाताओं की संख्या राज्य की कुल मतदाता संख्या का लगभग 8% हिस्सा है। यदि इनमें से अधिकांश नाम हटते हैं, तो कई निर्वाचन क्षेत्रों में परिणामों पर सीधा असर पड़ेगा।

 

निष्कर्ष

बिहार की राजनीति में यह मुद्दा आने वाले हफ्तों में और गरमा सकता है। एक ओर मतदाता सूची की शुद्धता पर ज़ोर दिया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर इस पर राजनीतिक रंग चढ़ने के आसार हैं। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि कितने नाम हटते हैं और इसका चुनावी नतीजों पर क्या असर पड़ता है।