पूर्णिया/नई दिल्ली से डॉ. गौतम
पाण्डेय: आज
संसद परिसर में जो कुछ भी हुआ, वह देश के लोकतंत्र की गरिमा पर एक बड़ा सवाल खड़ा करता
है। क्या राहुल गांधी इस देश को अपनी निजी जागीर समझते हैं? संसद के अंदर उनकी बेअदबी
तो जगजाहिर है, लेकिन अब संसद के बाहर भी उनके व्यवहार ने एक नई बहस को जन्म दिया है।
सत्ता से लंबे समय तक दूर रहने का असर उनकी मानसिकता पर साफ झलकता है। ऐसा प्रतीत होता
है कि वे अपनी जिम्मेदारियों और एक सांसद के मर्यादित आचरण को भूल चुके हैं।
संसद में राहुल गांधी का बैठने का तरीका देखिए। ऐसा लगता है, मानो
वे अपने घर के सोफे पर आराम फरमा रहे हों। चेहरे पर एक अजीब-सा घमंड साफ नजर आता है।
क्या आपने कभी किसी और सांसद को ऐसा अशिष्ट व्यवहार करते देखा है? वहां बैठने की भी
एक शालीनता होती है, जो जनता और लोकतंत्र के प्रति सम्मान का प्रतीक है। लेकिन शायद
कांग्रेस की 99 सीटें आने के बाद यह शालीनता गायब हो गई है।
आज संसद के बाहर का घटनाक्रम हर भारतीय के लिए चिंता का विषय है। राहुल
गांधी और उनके समर्थकों ने बीजेपी सांसदों के साथ धक्का-मुक्की की, जिसमें दो सांसद
घायल हो गए। एक सांसद के सिर में गंभीर चोट आई, जबकि दूसरे को अन्य चोटें लगीं। यह
घटना केवल एक व्यक्तिगत हमला नहीं है, बल्कि लोकतंत्र की मर्यादा पर सीधा प्रहार है।
जातिवाद और विभाजनकारी राजनीति के जरिए सफलता न मिलने के बाद अब हिंसा
का सहारा लेना दिखाता है कि राहुल गांधी और उनकी पार्टी किस हद तक जा सकती है। क्या
यही है एक जिम्मेदार विपक्ष का कर्तव्य? इस घटना पर संसद और देश की जनता को ठोस निर्णय
लेना होगा।
देश की जनता अब एकजुट होकर यह मांग कर रही है कि राहुल गांधी को तुरंत
प्रभाव से नेता प्रतिपक्ष (LOP) के पद से बर्खास्त किया जाए और उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई
की जाए। यह देश कानून के आधार पर चलता है, और कानून सबके लिए समान है। अगर यही घटना
किसी आम नागरिक ने की होती, तो वह अब तक जेल में होता। फिर राहुल गांधी के लिए अलग
कानून क्यों होना चाहिए?
आपका क्या मानना है? क्या राहुल गांधी का यह आचरण हमारे लोकतंत्र और
संसद की गरिमा के अनुरूप है? क्या उन्हें इसके लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए? हमें
कमेंट बॉक्स में अपनी राय जरूर दें।
चित्र साभार: गूगल
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