जहां एक ओर देशभर में ‘ऑपरेशन
सिंदूर’ को लेकर राष्ट्रवादी भावना उफान पर है, वहीं भारत की राजनीति में इस सैन्य
कार्रवाई को लेकर तीखी बहस छिड़ गई है। प्रमुख विपक्षी दलों ने सरकार पर आरोप लगाया
है कि वह इस सैन्य कार्रवाई का राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश कर रही है, खासकर उस वक्त
जब देश में आम चुनाव नजदीक हैं।
कांग्रेस का तीखा बयान
कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने एक प्रेस वार्ता में
कहा, “हम सेना के शौर्य को सलाम करते हैं, लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार सेना
के बलिदान को राजनीतिक प्रचार का हथियार बना रही है। आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई जरूरी
है, लेकिन उसे टीवी शो और चुनावी मंचों पर बेचने की कोशिश खतरनाक है।”
AAP और अन्य क्षेत्रीय दलों की
चिंता
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी सरकार पर सवाल उठाते हुए कहा,
“क्या ऑपरेशन के नाम पर जनता का ध्यान महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार से भटकाने की
कोशिश हो रही है?” उन्होंने यह भी कहा कि सेना के नाम पर वोट मांगना उस बलिदान का अपमान
है जो हमारे सैनिक सीमा पर देते हैं।
समर्थन और विरोध में बंटा राजनीतिक
माहौल
वहीं, भाजपा ने विपक्ष के आरोपों को सिरे से खारिज किया है। रक्षा मंत्री राजनाथ
सिंह ने कहा, “यह शर्मनाक है कि जब देश एक सुर में आतंकवाद के खिलाफ खड़ा है, तब
कुछ दल सेना की कार्रवाई को भी राजनीति से जोड़ रहे हैं। यह हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा
का मामला है, न कि कोई चुनावी मुद्दा।”
बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा
ने तो यहां तक कह दिया कि “देश को यह तय करना है कि वह देशभक्तों के साथ खड़ा होगा
या वोट बैंक की राजनीति करने वालों के साथ।”
सोशल मीडिया और जनभावना
सोशल मीडिया पर भी इस विषय को लेकर भारी बहस चल रही है। कुछ लोग सरकार के रुख का समर्थन
कर रहे हैं, तो कुछ विपक्षी दलों की इस चेतावनी से सहमत हैं कि सैन्य कार्रवाई को प्रचार
की वस्तु नहीं बनाया जाना चाहिए। ट्विटर पर हैशटैग्स #ArmyNotPolitics और
#SindoorForVotes ट्रेंड कर रहे हैं।
विश्लेषकों की राय
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भारत में हर बड़ी सैन्य कार्रवाई के बाद राजनीतिक
विमर्श का ध्रुवीकरण आम बात बन चुकी है। 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 के बालाकोट
एयरस्ट्राइक के बाद भी यही स्थिति देखी गई थी।
एक वरिष्ठ पत्रकार ने कहा, “ऐसे ऑपरेशन को राष्ट्र की सुरक्षा के संदर्भ में देखा जाना
चाहिए, न कि पार्टी विशेष की उपलब्धि के रूप में। यदि सरकार सच में देश की रक्षा को
सर्वोच्च प्राथमिकता देती है, तो उसे सेना को राजनीति से दूर रखना चाहिए।”
निष्कर्ष:
‘ऑपरेशन सिंदूर’ देश की सुरक्षा नीति का निर्णायक कदम है, लेकिन इसका राजनीतिकरण करना
विपक्ष और जनता दोनों को चिंतित कर रहा है। यह सवाल अब और भी अहम हो गया है—क्या राष्ट्रीय
सुरक्षा का मुद्दा राजनीति से ऊपर उठ पाएगा?
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