नई दिल्ली/पूर्णियां (डॉ. गौतम
पाण्डेय): जैसा
की आपको पता होगा की “एक देश एक चुनाव” का बिल लोक सभा में पास हो गया है। पक्ष
में 269 और विपक्ष 128 वोट पड़े। इस के बावजूद सरकार ने इस बिल पर और अधिक चर्चा के
लिए JPC को भेज दिया है। आज हम बात करने वाले हैं कि इस प्रकार के चुनावी व्यवस्था
के क्या लाभ और नुक्सान हो सकते हैं।
इस से पहले कि हम चर्चा को आगे
बढ़ाएं, पहले जान लेते हैं कि ये एक देश, एक चुनाव व्यवस्था क्या है और इसे लागू करने
के लिए क्या कदम उठाये जा सकते हैं।
"एक देश, एक चुनाव"
का विचार भारतीय लोकतंत्र में लंबे समय से चर्चा का विषय रहा है। इसका उद्देश्य लोकसभा
और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराना है। इस विचार को कारगर बनाने के लिए राजनीतिक,
आर्थिक और प्रशासनिक पहलुओं का गहराई से विश्लेषण आवश्यक है।
"एक देश, एक चुनाव"
की व्यवस्था क्या है:
यह व्यवस्था कहती है कि देशभर
में लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक ही समय पर कराए जाएं। इसका मतलब होगा
कि सभी निर्वाचित प्रतिनिधियों का कार्यकाल एक समान होगा।
इस व्यवस्था को लागू करने के
लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:
1. समान कार्यकाल की व्यवस्था: लोकसभा और विधानसभाओं के कार्यकाल
में संशोधन करना होगा ताकि उनकी समाप्ति एक साथ हो।
2. संविधान में संशोधन: अनुच्छेद 83(2), 172(1), 85
और 174 जैसे प्रावधानों में बदलाव करना होगा।
3. चुनाव आयोग की भूमिका: चुनाव प्रक्रिया को सुगम बनाने
के लिए चुनाव आयोग को विस्तारित शक्तियां दी जाएंगी।
4. व्यवधान का समाधान: यदि कोई सरकार बीच में गिरती
है, तो अंतरिम व्यवस्था के लिए राष्ट्रपति शासन या अन्य तंत्र अपनाना होगा।
इस चर्चा को आगे बढ़ाते हुए ये
जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर "एक देश, एक चुनाव" के क्या-क्या लाभ हो
सकते हैं:
1. चुनाव खर्च में कमी: बार-बार चुनाव कराने से सरकार
और राजनीतिक दलों पर भारी खर्च का बोझ पड़ता है। एक साथ चुनाव कराने से यह खर्च कम
होगा। 2019 के लोकसभा चुनाव पर ₹60,000 करोड़ से अधिक खर्च हुआ था। "एक देश, एक
चुनाव" से यह राशि बचाई जा सकती है।
2. प्रशासनिक कार्यक्षमता में सुधार: बार-बार
चुनाव कराने से प्रशासनिक कार्य प्रभावित होते हैं। चुनाव के दौरान अधिकारियों को चुनावी
कार्यों में लगाया जाता है, जिससे विकास कार्य धीमे पड़ते हैं।
3. चुनाव के दौरान आचार संहिता का
प्रभाव: चुनाव
आचार संहिता लागू होने से सरकार कई विकास योजनाओं को रोक देती है। एक साथ चुनाव होने
पर यह समस्या कम हो जाएगी।
4. राजनीतिक स्थिरता: लगातार चुनावों से राजनीतिक दलों
का ध्यान नीति निर्माण से हटकर चुनावी तैयारियों पर केंद्रित हो जाता है। एक साथ चुनाव
से यह समस्या हल हो सकती है।
5. मतदाता भागीदारी में वृद्धि:
अलग-अलग चुनावों
में मतदाताओं की भागीदारी अलग-अलग होती है। एक साथ चुनाव से मतदाता जागरूकता और भागीदारी
में वृद्धि हो सकती है।
6. राजनीतिक शत्रुता में कमी: बार-बार चुनाव होने से राजनीतिक
दलों के बीच टकराव बढ़ता है। एक साथ चुनाव से यह टकराव सीमित हो सकता है।
अब बात करते हैं कि "एक
देश, एक चुनाव" के क्या - क्या नुकसान हो सकते हैं:
1. संविधान में संशोधन की जटिलता: यह व्यवस्था लागू करने के लिए
कई संवैधानिक संशोधन आवश्यक होंगे, जो जटिल और समय-साध्य हो सकते हैं।
2. राज्यों के अधिकारों पर प्रभाव:
राज्यों के
स्वतंत्रता और स्वायत्तता पर प्रश्नचिह्न लग सकता है। "एक देश, एक चुनाव"
का विचार संघीय ढांचे को कमजोर कर सकता है।
3. स्थानीय मुद्दों की अनदेखी: यदि लोकसभा और विधानसभा चुनाव
एक साथ होते हैं, तो स्थानीय मुद्दे राष्ट्रीय मुद्दों के सामने दब सकते हैं।
4. संसदीय प्रणाली पर प्रभाव: भारत की संसदीय प्रणाली में
सरकार कभी भी गिर सकती है। ऐसी स्थिति में क्या सभी चुनाव फिर से कराए जाएंगे? यह एक
बड़ी चुनौती है।
5. आर्थिक लागत: शुरुआत में यह व्यवस्था लागू
करने पर भारी आर्थिक लागत आएगी। चुनाव सामग्री, ईवीएम, वीवीपैट और अन्य संसाधनों की
अतिरिक्त आवश्यकता होगी।
6. मतदाता व्यवहार पर असर: एक साथ चुनाव से मतदाता राष्ट्रीय
मुद्दों को प्राथमिकता दे सकते हैं, जिससे राज्य स्तर के मुद्दे पीछे छूट सकते हैं।
7. प्रशासनिक बोझ: एक साथ चुनाव कराने से चुनाव
आयोग और सुरक्षा बलों पर भारी दबाव पड़ेगा।
इस व्यवस्था को लागू करना इतना
आसान भी नहीं है। तो आइये जानते है कि इस व्यवस्था लागू करने की चुनौतियां सामने आ
सकती हैं:
1. संवैधानिक संशोधन: यह प्रस्ताव संविधान के संघीय
ढांचे के मूल सिद्धांतों के खिलाफ माना जा सकता है। इसे लागू करने के लिए संसद और राज्यों
के बीच व्यापक सहमति आवश्यक है।
2. राजनीतिक दलों की असहमति: कई क्षेत्रीय दल इस विचार का
विरोध करते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि यह केंद्र में सत्तारूढ़ दल को लाभ पहुंचा
सकता है।
3. तकनीकी तैयारियां: ईवीएम और वीवीपैट की संख्या
और उनके प्रबंधन के लिए पर्याप्त समय और संसाधन की आवश्यकता होगी।
4. आपातकालीन स्थिति का समाधान:
यदि कोई राज्य
सरकार कार्यकाल से पहले गिरती है, तो उसके लिए विशेष प्रावधान बनाने होंगे।
इसका निष्कर्ष यह है कि
"एक देश, एक चुनाव"
का विचार राजनीतिक और आर्थिक दृष्टि से फायदेमंद प्रतीत होता है। इससे चुनाव प्रक्रिया
सरल हो सकती है, और सरकारें विकास कार्यों पर अधिक ध्यान केंद्रित कर सकती हैं। हालांकि,
इसे लागू करना भारत के संघीय ढांचे और संसदीय प्रणाली के लिए एक बड़ी चुनौती होगी।
इस विचार को सफलतापूर्वक लागू
करने के लिए सभी राजनीतिक दलों, विशेषज्ञों और जनता के बीच व्यापक चर्चा और सहमति आवश्यक
है। यह भी सुनिश्चित करना होगा कि इस प्रक्रिया से संघीय ढांचे, स्थानीय मुद्दों और
लोकतांत्रिक मूल्यों को कोई क्षति न पहुंचे। "एक देश, एक चुनाव" एक दूरदर्शी
विचार है, लेकिन इसे लागू करने के लिए संतुलित और समावेशी दृष्टिकोण अपनाना होगा।
आपको ये विश्लेषण कैसा लगा हमें
कमेंट में अवश्य बताएं।
Recent Comments