नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री विवाद से जुड़ी याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट में सुनवाई हुई, जहां दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) ने तर्क दिया कि आरटीआई दाखिल करना अब पेशा बन गया है। केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान, डीयू की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि कोई भी तीसरा पक्ष किसी की डिग्री की जानकारी सिर्फ अपनी जिज्ञासा के आधार पर नहीं मांग सकता।

 

हाईकोर्ट ने इस मामले में सभी पक्षकारों को लिखित जवाब दाखिल करने की अनुमति देते हुए अगली सुनवाई 19 फरवरी को निर्धारित की है।

 

डीयू ने आरटीआई के दुरुपयोग का आरोप लगाया:

सुनवाई के दौरान डीयू ने स्पष्ट किया कि किसी छात्र की शैक्षिक योग्यता से संबंधित जानकारी निजी होती है और इसे सूचना का अधिकार (RTI) कानून के तहत सार्वजनिक नहीं किया जा सकता। विश्वविद्यालय का कहना था कि आरटीआई का मकसद किसी व्यक्ति की उत्सुकता को शांत करना नहीं, बल्कि सार्वजनिक हित की रक्षा करना है।

 

डीयू ने यह भी तर्क दिया कि आरटीआई कानून की धारा 6 के तहत केवल वही जानकारी साझा की जा सकती है जो किसी वैध आवश्यकता के अंतर्गत आती हो। तुषार मेहता ने कहा कि "सूचना के अधिकार कानून का उपयोग किसी सार्वजनिक प्राधिकारी या पदाधिकारी की निजी जानकारी प्राप्त करने के लिए नहीं किया जा सकता।"

 

क्या है पूरा मामला?

आम आदमी पार्टी (AAP) से जुड़े नीरज शर्मा ने आरटीआई के तहत दिल्ली विश्वविद्यालय से पीएम मोदी की डिग्री की जानकारी मांगी थी। विश्वविद्यालय ने इसे निजी जानकारी बताते हुए साझा करने से इनकार कर दिया। नीरज शर्मा ने इसके बाद केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) का रुख किया, जिसने डीयू के सूचना अधिकारी मीनाक्षी सहाय पर 25,000 रुपये का जुर्माना लगाते हुए मोदी की डिग्री की जानकारी सार्वजनिक करने का आदेश दिया था।

 

डीयू ने इस आदेश को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी, जिसके बाद 24 जनवरी 2017 को हाईकोर्ट ने CIC के आदेश पर रोक लगा दी थी। अब इस मामले में सुनवाई फिर से शुरू हुई है और अदालत ने 19 फरवरी को अगली सुनवाई तय की है।

 

क्या कहता है कानून?

दिल्ली विश्वविद्यालय का तर्क है कि किसी भी छात्र की डिग्री से जुड़ी जानकारी यूनिवर्सिटी और छात्र के बीच का मामला होता है और इसे तीसरे पक्ष को देना कानूनन आवश्यक नहीं है। डीयू ने कहा कि सूचना साझा करने से कोई सार्वजनिक हित नहीं सधता।

 

अब इस मामले में हाईकोर्ट के आगामी फैसले पर सभी की नजरें टिकी हैं।