नई दिल्ली: 2024 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी ने शानदार प्रदर्शन कर अपने पुनरुत्थान का संकेत दिया, लेकिन बीते छह महीनों में पार्टी के सामने सियासी चुनौतियां और उसके गठबंधन साथियों के बदलते रुख ने इसे एक बार फिर सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है। राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता पर गठबंधन के कई प्रमुख नेताओं ने अप्रत्यक्ष रूप से असहमति जताई है, जो कांग्रेस के लिए चिंता का विषय बन गया है।

 

गठबंधन की दरारें

  1. उमर अब्दुल्ला का तीखा बयान
    • जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कांग्रेस की हार के बाद ईवीएम को दोष देने की प्रवृत्ति पर कटाक्ष किया।
    • उन्होंने कांग्रेस को आत्ममंथन की सलाह देते हुए कहा कि जब कांग्रेस ईवीएम के माध्यम से संसद की 100 से अधिक सीटें जीत सकती है, तो हार के बाद उसी ईवीएम पर सवाल उठाना बेमानी है।
    • जम्मू-कश्मीर की सरकार में कांग्रेस की भागीदारी होने के बावजूद, कांग्रेस को इस सरकार में कोई मंत्री पद नहीं दिया गया है।

 

  1. अखिलेश यादव का कांग्रेस से टकराव
    • समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख अखिलेश यादव ने कई मौकों पर कांग्रेस से दूरी बनाई है।
    • यूपी उपचुनावों में कांग्रेस से बिना सलाह लिए सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारने के बाद, अखिलेश ने कांग्रेस को स्पष्ट संकेत दिए।
    • दिल्ली में आम आदमी पार्टी के साथ अखिलेश का मंच साझा करना यह दर्शाता है कि सपा अब कांग्रेस से अधिक अरविंद केजरीवाल के करीब है।

 

  1. ममता बनर्जी की महत्वाकांक्षाएं
    • तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी ने इंडिया गठबंधन की कमान संभालने की इच्छा जताई है।
    • गठबंधन में अखिलेश यादव और अन्य दलों ने ममता बनर्जी को बड़ी भूमिका देने का समर्थन किया है, लेकिन कांग्रेस इस पर अब तक चुप है।

 

कांग्रेस की चुनौतियां

  1. नेतृत्व संकट
    • राहुल गांधी को इंडिया गठबंधन का प्रमुख बनाए जाने की कांग्रेस की इच्छा अन्य दलों द्वारा अस्वीकार की जा रही है।
    • गठबंधन सहयोगियों का कांग्रेस पर भरोसा कम होता दिख रहा है।

 

  1. गठबंधन में अलग-थलग पड़ना
    • कांग्रेस, इंडिया गठबंधन के बड़े घटक के रूप में उभरने के बावजूद, नेतृत्व के सवाल पर अकेली पड़ गई है।
    • ममता बनर्जी और अखिलेश यादव जैसे बड़े नेता राहुल गांधी की नेतृत्व शैली पर अप्रत्यक्ष सवाल उठा रहे हैं।

 

  1. राजनीतिक अंतर्विरोध
    • महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी से सपा का बाहर होना और दिल्ली में AAP के साथ तालमेल का बढ़ना गठबंधन में कांग्रेस की स्थिति को कमजोर कर रहा है।

 

कांग्रेस के लिए आगे की राह

  1. नेतृत्व को मजबूत करना
    • राहुल गांधी को अन्य दलों के नेताओं के साथ संवाद और विश्वास निर्माण की प्रक्रिया शुरू करनी होगी।
  2. गठबंधन की मजबूती
    • सहयोगी दलों के साथ बेहतर तालमेल बनाकर गठबंधन को एकजुट रखना कांग्रेस की प्राथमिकता होनी चाहिए।
  3. स्पष्टता और रणनीति
    • ममता बनर्जी और अन्य नेताओं की महत्वाकांक्षाओं के प्रति कांग्रेस को स्पष्ट रुख अपनाना होगा।

 

निष्कर्ष

2024 के चुनावों के बाद कांग्रेस के पुनरुत्थान की उम्मीदें जगी थीं, लेकिन मौजूदा सियासी परिस्थितियों में पार्टी के सामने गंभीर चुनौतियां खड़ी हो गई हैं। गठबंधन सहयोगियों के बदलते रुख और कांग्रेस की आंतरिक रणनीतिक कमजोरियों को देखते हुए, अगर पार्टी ने जल्द ही ठोस कदम नहीं उठाए, तो यह न केवल गठबंधन को बल्कि अपने पुनरुत्थान के प्रयासों को भी कमजोर कर सकती है।

(प्रतीकात्मक तस्वीर: गूगल साभार)