पूर्णिया (GPNewsBihar Desk): देश में लोकसभा और विधानसभा सीटों का निर्धारण परिसीमन प्रक्रिया के आधार पर किया जाता है। 2026 तक नई सीटों के बढ़ने की संभावना जताई जा रही है, जिससे उत्तर भारत के राज्यों को अधिक और दक्षिण भारत के राज्यों को अपेक्षाकृत कम सीटें मिल सकती हैं। इस बदलाव का दक्षिण भारतीय राज्यों में विरोध देखा जा रहा है। हालांकि, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आश्वासन दिया है कि किसी भी राज्य की सीटों की संख्या नहीं घटेगी।

 

परिसीमन क्यों किया जाता है?

लोकसभा और विधानसभाओं में संतुलित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए परिसीमन किया जाता है। संविधान के अनुच्छेद 82 और 170 के तहत प्रत्येक जनगणना के बाद लोकसभा और विधानसभा सीटों की सीमाएं और संख्या नए सिरे से तय करने के प्रावधान हैं। संविधान निर्माताओं ने यह व्यवस्था की थी ताकि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में मतदाताओं की संख्या संतुलित बनी रहे।

 

अब तक देश में चार बार—1952, 1963, 1973 और 2002 में परिसीमन हो चुका है। 1976 में आपातकाल के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने परिवार नियोजन नीतियों को प्रोत्साहित करने के लिए सीटों के निर्धारण को फ्रीज कर दिया था। इस फैसले को 42वें संविधान संशोधन के जरिए लागू किया गया, जिससे 2001 तक सीटों की संख्या में कोई बदलाव नहीं हुआ।

 

दक्षिण भारत में विरोध क्यों?

तमिलनाडु समेत दक्षिण भारत के कई राज्यों ने परिसीमन के प्रस्ताव का विरोध किया है। उनका तर्क है कि उन्होंने जनसंख्या नियंत्रण की नीतियों को प्रभावी रूप से लागू किया, जिससे उनकी जनसंख्या वृद्धि दर कम रही। अब यदि जनसंख्या के आधार पर सीटों का पुनर्वितरण किया जाता है, तो उन्हें नुकसान उठाना पड़ेगा और उत्तर भारत को अधिक राजनीतिक लाभ मिलेगा।

 

परिसीमन के संभावित प्रभावों को देखते हुए दक्षिणी राज्यों का कहना है कि यह अच्छे कामों के लिए दंड देने जैसा होगा। दूसरी ओर, उत्तर भारत की बढ़ती जनसंख्या को देखते हुए वहां के राज्यों को ज्यादा प्रतिनिधित्व मिलने की संभावना है।

 

सीटों का गणित कैसे बदलेगा?

2026 तक भारत की जनसंख्या लगभग 150 करोड़ होने की उम्मीद है। अनुमान के मुताबिक, उत्तर प्रदेश की लोकसभा सीटें 80 से बढ़कर 128 और बिहार की सीटें 40 से बढ़कर 70 हो सकती हैं। वहीं, कर्नाटक की सीटें 28 से 36, तेलंगाना की 17 से 20 और आंध्र प्रदेश की 25 से 28 होने की संभावना है। तमिलनाडु की सीटें 39 से बढ़कर 41 हो सकती हैं, जबकि केरल की सीटें 20 से घटकर 19 हो सकती हैं।

 

1971 की जनगणना के अनुसार, बिहार और तमिलनाडु को लगभग समान सीटें (40 और 39) मिली थीं। लेकिन पिछले 50 वर्षों में बिहार की जनसंख्या तेज़ी से बढ़ी, जिससे वहां एक लोकसभा सीट पर 32 लाख लोग आते हैं, जबकि तमिलनाडु में एक सीट पर 20 लाख लोग।

 

गृह मंत्री का आश्वासन

परिसीमन के मुद्दे पर जारी विवाद को देखते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दक्षिण भारत के हितों के प्रति सतर्क हैं। सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि किसी भी राज्य की सीटें कम हों। यदि सीटें बढ़ती हैं, तो सभी राज्यों को उनका उचित हिस्सा मिलेगा।"

 

क्या होगा आगे?

2024 लोकसभा चुनाव के बाद केंद्र सरकार जनगणना और परिसीमन की प्रक्रिया शुरू करने जा रही है। परिसीमन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद लोकसभा और विधानसभा सीटों का नया स्वरूप सामने आएगा, जिससे देश के राजनीतिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण बदलाव सकते हैं।