दिल्ली की दमघोंटू
हवा: प्रदूषण पर सियासत, समाधान से दूर
दिल्ली (डॉ. गौतम पाण्डेय):
दिल्ली और एनसीआर में वायु प्रदूषण
का मुद्दा हर साल गंभीर रूप से सामने आता है, लेकिन इससे निपटने के प्रयास अक्सर दोषारोपण
और खोखले वादों तक सीमित रह जाते हैं। राजधानी की हवा इस समय इतनी जहरीली हो चुकी है
कि यह लोगों की सांसें छीनने पर उतारू है। हवा की गुणवत्ता में गिरावट का असर न केवल
लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है, बल्कि यह जीवन प्रत्याशा को भी कम कर रहा है। एक
रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में रहने वाला हर व्यक्ति अपनी आयु में हर दो दिन में एक
दिन खो रहा है। बावजूद इसके, समाधान की दिशा में ठोस कदम उठाने के बजाय राज्य और केंद्र
सरकारें एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करने में व्यस्त हैं।
खतरनाक स्तर पर पहुंचा प्रदूषण
दिल्ली-एनसीआर में वायु गुणवत्ता
सूचकांक (AQI) लगातार खतरनाक स्तर पर बना हुआ है। बुधवार को AQI का औसत स्तर 400 से
ऊपर दर्ज किया गया, जो गंभीर श्रेणी में आता है। कई इलाकों में AQI 450 से भी ऊपर पहुंच
गया, जिसे खतरनाक श्रेणी में रखा जाता है। स्विस कंपनी आइक्यूएयर की रिपोर्ट के अनुसार,
जहांगीरपुरी का एक्यूआइ 1,005 तक पहुंच गया, जो हालात की भयावहता को दर्शाता है।
प्रदूषण का यह स्तर दिल्ली को
लगातार दूसरे दिन देश का सबसे प्रदूषित शहर बना चुका है। गाजियाबाद 430 के एक्यूआइ
के साथ देश में दूसरा सबसे प्रदूषित शहर रहा। ऐसे में यह स्पष्ट है कि दिल्ली-एनसीआर
के लोग एक स्वास्थ्य आपातकाल से गुजर रहे हैं।
प्रदूषण के कारण और प्रशासन की
नाकामी
दिल्ली के वायु प्रदूषण के पीछे
कई कारक जिम्मेदार हैं। इनमें वाहनों से निकलने वाला धुआं, उद्योगों का प्रदूषण, निर्माण
कार्यों से उड़ती धूल और सर्दियों में पंजाब-हरियाणा से आने वाला पराली का धुआं प्रमुख
हैं। लेकिन इस बार दिल्ली सरकार पर सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि अब हरियाणा और पंजाब
जैसे पड़ोसी राज्यों में भी आम आदमी पार्टी की सरकार है। इसके बावजूद पराली जलाने का
मुद्दा जस का तस है।
राज्य और केंद्र सरकार के बीच
दोषारोपण की राजनीति आम जनता के लिए त्रासदी साबित हो रही है। एक ओर राज्य सरकार केंद्र
पर आरोप लगाती है कि वह पर्यावरणीय योजनाओं के लिए फंड जारी नहीं कर रही, तो दूसरी
ओर केंद्र सरकार राज्य पर लापरवाही का आरोप लगाती है।
ग्रेप पाबंदियां और उनका प्रभाव
दिल्ली-एनसीआर में ग्रेडेड रेस्पॉन्स
एक्शन प्लान (ग्रेप) के तहत प्रदूषण कम करने के लिए कई पाबंदियां लागू की गई हैं। ग्रेप-3
और ग्रेप-4 के तहत निर्माण कार्यों पर प्रतिबंध, डीजल वाहनों की रोक और औद्योगिक गतिविधियों
पर नियंत्रण जैसे कदम उठाए गए हैं। बावजूद इसके, हालात गंभीर बने हुए हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि इन
पाबंदियों का प्रभाव तभी दिखेगा जब सरकारें इसे सख्ती से लागू करें और प्रदूषण के मूल
कारणों को दूर करने के लिए दीर्घकालिक योजनाएं बनाएं। फिलहाल, ये पाबंदियां केवल अल्पकालिक
राहत प्रदान करती हैं।
स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव
प्रदूषण का सबसे बड़ा प्रभाव
लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। बढ़ते प्रदूषण से लोगों को सांस लेने में दिक्कत,
गले में खराश, आंखों में जलन और अस्थमा जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। वायु
प्रदूषण का असर बच्चों और बुजुर्गों पर सबसे ज्यादा हो रहा है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO)
के अनुसार, वायु प्रदूषण के कारण हृदय और फेफड़ों की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
दिल्ली में हालात इतने खराब हो चुके हैं कि यहां के लोग लगातार बीमारियों के खतरे में
जी रहे हैं।
समाधान की दिशा में क्या हो सकता
है?
- दीर्घकालिक
नीति बनाना:
दिल्ली और एनसीआर के लिए एक ठोस और दीर्घकालिक नीति बनानी होगी, जिसमें सभी राज्यों
और केंद्र का सहयोग सुनिश्चित हो।
- पराली
जलाने का विकल्प:
पराली जलाने की समस्या के समाधान के लिए किसानों को सब्सिडी और पराली के उचित
निस्तारण के लिए सुविधाएं दी जानी चाहिए।
- सौर
ऊर्जा और इलेक्ट्रिक वाहन: प्रदूषण कम करने के लिए सौर ऊर्जा और इलेक्ट्रिक
वाहनों को बढ़ावा देना जरूरी है। इसके लिए सब्सिडी और जागरूकता अभियान चलाए जाने
चाहिए।
- पेड़ों
का संरक्षण और वृक्षारोपण: दिल्ली-एनसीआर में पेड़ों की संख्या बढ़ाने के लिए
बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण अभियान चलाने होंगे।
- जनभागीदारी: प्रदूषण कम करने के लिए
आम जनता को जागरूक करना और उनकी भागीदारी सुनिश्चित करना भी बेहद जरूरी है।
निष्कर्ष
दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण
का संकट हर साल गंभीर होता जा रहा है। इसके लिए राज्य और केंद्र सरकारों को आपसी मतभेद
भुलाकर मिलकर काम करना होगा। वायु प्रदूषण से निपटने के लिए दीर्घकालिक और ठोस कदम
उठाने की जरूरत है। अगर समय रहते इस दिशा में प्रयास नहीं किए गए, तो दिल्लीवासियों
को आने वाले दिनों में और गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
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