भारत की कूटनीति
ने साधा तुर्की-पाकिस्तान पर एक साथ निशाना, साइप्रस दौरे से बदल सकते हैं पश्चिम एशिया
के समीकरण
नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
15 से 17 जून के बीच कनाडा में आयोजित हो रहे जी-7 शिखर सम्मेलन में भाग लेने जा रहे
हैं, लेकिन इस वैश्विक मंच पर पहुंचने से पहले वे साइप्रस की ऐतिहासिक यात्रा पर रुकेंगे।
यह दौरा न सिर्फ प्रतीकात्मक है बल्कि रणनीतिक दृष्टिकोण से भी बेहद महत्वपूर्ण माना
जा रहा है। खासतौर पर तब जब तुर्की लगातार पाकिस्तान का पक्ष लेता रहा है और 'ऑपरेशन
सिंदूर' के दौरान आतंकियों के समर्थन में बयान दे चुका है।
तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप
एर्दोगन ने हाल ही में भारतीय एयरस्ट्राइक में मारे गए आतंकियों के प्रति संवेदना जताई
थी, जिससे भारत और तुर्की के रिश्तों में और खटास आ गई। ऐसे में पीएम मोदी का साइप्रस
जाना एक स्पष्ट संदेश है—भारत अब पश्चिमी एशिया की राजनीति में भी अपनी सक्रिय भूमिका
निभाएगा और अपने विरोधियों को कूटनीतिक मोर्चे पर चुनौती देगा।
क्या है साइप्रस और तुर्की का
विवाद?
साइप्रस भूमध्यसागर में स्थित एक रणनीतिक द्वीप राष्ट्र है, जो 1974 से तुर्की के साथ
संघर्ष की स्थिति में है। उस वर्ष ग्रीक समर्थकों द्वारा किए गए तख्तापलट के बाद तुर्की
ने ‘अपने समुदाय की सुरक्षा’ का हवाला देकर साइप्रस पर हमला किया और उसके प्रमुख शहर
वरोशा पर कब्जा कर लिया। तब से साइप्रस दो हिस्सों में बंट गया है—एक जिसे अंतरराष्ट्रीय
समुदाय मान्यता देता है और दूसरा जो केवल तुर्की द्वारा समर्थित है।
वर्तमान में तुर्की के हजारों
सैनिक साइप्रस के कब्जे वाले क्षेत्र में तैनात हैं। संयुक्त राष्ट्र के तहत एक बफर
जोन इन दोनों हिस्सों को अलग करता है। दशकों से इस समस्या के समाधान के लिए कई
अंतरराष्ट्रीय प्रयास किए गए, लेकिन सभी विफल रहे हैं।
भारत और साइप्रस: भरोसे का रिश्ता
भारत लंबे समय से साइप्रस के संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के पक्ष में रहा है। साइप्रस
ने भी हमेशा भारत के साथ मित्रवत रुख अपनाया है—चाहे वह कश्मीर मुद्दा हो, आतंकवाद
पर संयुक्त रुख या फिर भारत की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता की
दावेदारी।
1998 के पोखरण परमाणु परीक्षण
के समय साइप्रस ने भारत का समर्थन किया था। साथ ही भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के समय
भी वह भारत के पक्ष में खड़ा रहा। हाल ही में, साइप्रस ने संयुक्त राष्ट्र में भारत
की उम्मीदवारी का समर्थन भी किया था।
पीएम मोदी की यात्रा क्यों है
महत्वपूर्ण?
पीएम मोदी की यह यात्रा इसलिए भी अहम है क्योंकि यह 2002 के बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री
की पहली साइप्रस यात्रा होगी। इससे पहले केवल अटल बिहारी वाजपेयी (2002) और इंदिरा
गांधी (1983) ही इस द्वीप देश के दौरे पर गए थे। 23 साल बाद पीएम मोदी का वहां जाना
साफ संकेत देता है कि भारत अब रणनीतिक साझेदारियों को सिर्फ भूगोल नहीं, भू-राजनीति
के नजरिए से देख रहा है।
निष्कर्ष:
साइप्रस दौरा न सिर्फ भारत की विदेश नीति का विस्तार है, बल्कि यह पाकिस्तान और तुर्की
जैसे देशों को कूटनीतिक जवाब देने का सटीक माध्यम भी है। भारत ने यह स्पष्ट कर दिया
है कि वह अपने हितों की रक्षा के लिए वैश्विक मंचों पर किसी भी हद तक जाने को तैयार
है—चाहे वह जी-7 हो या भूमध्यसागर का कोई टुकड़ा।
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