नई दिल्ली: इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव एक बार फिर सुर्खियों
में हैं। समान नागरिक संहिता के समर्थन में मुस्लिम समुदाय को लेकर दिए गए उनके विवादास्पद
बयान ने बड़ा राजनीतिक बवाल खड़ा कर दिया है। विपक्ष ने उनके खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया
शुरू कर दी है। इस बीच, पूर्व मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने खुलासा
किया है कि उन्होंने जस्टिस यादव की हाई कोर्ट में नियुक्ति का कड़ा विरोध किया था।
विवाद की शुरुआत
जस्टिस यादव ने हाल ही में इलाहाबाद हाई कोर्ट
परिसर में विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के एक कार्यक्रम में समान नागरिक संहिता का समर्थन
करते हुए कहा, "यह हिंदुस्तान है और देश बहुसंख्यकों के अनुसार चलेगा।" उन्होंने
मुस्लिमों की चार शादियों और इस्लामिक परंपराओं पर भी टिप्पणियां कीं। इस बयान को लेकर
विपक्ष और अन्य समूहों ने तीखी प्रतिक्रिया दी। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता
से लेते हुए जस्टिस यादव को तलब कर फटकार लगाई और भविष्य में ऐसी टिप्पणियों से बचने
की चेतावनी दी।
पूर्व सीजेआई का विरोध और कारण
पूर्व सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने पुष्टि की है
कि उन्होंने 2018 में जस्टिस यादव की नियुक्ति का विरोध किया था। एक लीगल न्यूज पोर्टल
'लीफलेट' की रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस चंद्रचूड़ ने तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा को
लिखे नोट में यादव के आरएसएस से संबंध, पर्याप्त अनुभव की कमी और बीजेपी के एक राज्यसभा
सांसद से करीबी का हवाला देते हुए उन्हें 'जज बनने के योग्य नहीं' बताया था।
चंद्रचूड़ ने यह भी कहा कि न्यायपालिका में किसी
जज की नियुक्ति के लिए केवल रिश्तेदारी या संबंध आधार नहीं हो सकते। उनके अनुसार, जजों
को अपनी टिप्पणियों और कार्यों से न्यायपालिका की निष्पक्ष छवि बनाए रखनी चाहिए।
नियुक्ति के बावजूद उठते सवाल
जस्टिस चंद्रचूड़ के विरोध के बावजूद, 2019 में
तत्कालीन सीजेआई रंजन गोगोई की अगुआई वाले कॉलेजियम ने यादव की नियुक्ति को मंजूरी
दी। 12 दिसंबर 2019 को जस्टिस यादव को इलाहाबाद हाई कोर्ट में अतिरिक्त जज बनाया गया
और 2021 में उन्हें स्थायी जज के रूप में नियुक्त किया गया।
विवाद का राजनीतिक आयाम
जस्टिस यादव के बयान से उपजा विवाद केवल न्यायपालिका
तक सीमित नहीं रहा। विपक्षी दलों ने इसे न्यायपालिका की निष्पक्षता पर हमला करार दिया।
संसद में उनके खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू करने के लिए नोटिस दाखिल किया गया
है।
निष्कर्ष
जस्टिस शेखर यादव का मामला भारतीय न्यायपालिका
में निष्पक्षता और नियुक्ति प्रक्रिया की गंभीरता पर सवाल खड़ा करता है। उनके हालिया
बयान ने न केवल राजनीतिक विवाद को जन्म दिया, बल्कि न्यायपालिका की निष्पक्ष छवि को
लेकर भी बहस छेड़ दी है। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि यह मामला आगे क्या मोड़ लेता
है और इससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता और सार्वजनिक छवि पर क्या असर पड़ता है।
चित्र साभार: गूगल
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