(डॉ. गौतम पाण्डेय का विश्लेषण)

 

परिचय:

भारत में वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन वक्फ बोर्ड के अधीन होता है, जिसकी देखरेख 1995 के वक्फ अधिनियम के तहत की जाती है। हाल ही में सरकार ने वक्फ संशोधन बिल प्रस्तुत किया, जिसमें वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और निगरानी से जुड़े कई बदलाव प्रस्तावित किए गए हैं। यह बिल संसद में पेश होते ही राजनीतिक विवादों के केंद्र में गया है।

 

जेपीसी के तहत कई बैठकों और लम्बी चर्चा के बाद एक बार फिर यह बिल संसद में पेश होने के लिए तैयार है। बिल, कल यानि 2 अप्रैल 2025 को संसद में पेश किया जायेगा। गौरतलब है कि इंडी गठबंधन ने भी इस बिल को पास नहीं होने देने ले लिए कमर कस ली है। हालाँकि, विपक्ष इस मुद्दे पर एकजुट होता नहीं दिख रहा है। फिर भी यह तो बिल पेश होने के बाद ही पता चल पायेगा कि ऊँट किस करवट बैठा। सरकार ने भी पूरा जोर लगाया हुआ है कि इस बार किसी भी परिस्थिति में यह बिल पास करवाना ही है।

 

संशोधन के मुख्य बिंदु:

·        इस बिल में वक्फ संपत्तियों के प्रशासन में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने के लिए कई सुधारों का प्रस्ताव किया गया है:

·        वक्फ संपत्तियों की पुनः जाँच: केंद्र सरकार वक्फ संपत्तियों की दोबारा समीक्षा और सर्वेक्षण का अधिकार चाहती है, ताकि किसी भी अनियमितता को दूर किया जा सके।

·        राज्य सरकारों का हस्तक्षेप घटाना: अभी तक राज्य सरकारों के पास वक्फ बोर्ड की कई गतिविधियों पर नियंत्रण था। प्रस्तावित संशोधन के तहत, केंद्र सरकार को अधिक शक्तियां देने की बात की जा रही है।

·        गैर-इस्लामिक व्यक्तियों को सदस्यता: वक्फ बोर्ड में केवल मुस्लिम समुदाय के लोग ही सदस्य बन सकते थे। नए संशोधन में यह प्रस्ताव रखा गया है कि गैर-मुस्लिम विशेषज्ञों को भी बोर्ड में शामिल किया जा सकता है।

·        वक्फ संपत्तियों की निगरानी: सरकार एक केंद्रीय एजेंसी बनाने की योजना बना रही है, जो वक्फ संपत्तियों की बिक्री, लीज़ और अन्य गतिविधियों की निगरानी करेगी।

 

विवाद और विरोध के कारण:

·        मुस्लिम संगठनों का विरोध: ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और कई अन्य संगठनों का कहना है कि यह संशोधन वक्फ संपत्तियों पर सरकारी नियंत्रण बढ़ाने की कोशिश है।

·        राजनीतिक दलों की आपत्तियाँ: कांग्रेस और कुछ अन्य विपक्षी दलों का आरोप है कि सरकार संविधान के धर्मनिरपेक्ष ढांचे के साथ छेड़छाड़ कर रही है और अल्पसंख्यकों के अधिकारों को सीमित करना चाहती है।

·        एनडीए में मतभेद: वक्फ संपत्तियों के सर्वेक्षण और नियंत्रण के मुद्दे पर टीडीपी और जेडीयू जैसे सहयोगी दलों में असहमति दिख रही है। टीडीपी और जेडीयू का रुख अस्पष्ट बना हुआ है, जिससे सरकार पर दबाव बढ़ रहा है।

·        भूमि अधिग्रहण का मुद्दा: यह आशंका जताई जा रही है कि संशोधन लागू होने के बाद सरकार वक्फ संपत्तियों को अधिग्रहण कर सकती है, जिससे धार्मिक स्वतंत्रता प्रभावित हो सकती है।

 

निष्कर्ष:

वक्फ संशोधन बिल को लेकर विरोध और समर्थन की मिश्रित प्रतिक्रियाएँ हैं। सरकार इसे पारदर्शिता और सुशासन का कदम बता रही है, जबकि विरोधी इसे धार्मिक मामलों में सरकारी हस्तक्षेप मान रहे हैं। अगर यह बिल पास होता है, तो यह भारत की धार्मिक और सामाजिक संरचना पर दूरगामी प्रभाव डाल सकता है।