(डॉ. गौतम पाण्डेय)
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप
द्वारा प्रस्तावित 'पारस्परिक टैरिफ' (Reciprocal Tax) की नीति ने वैश्विक व्यापार
परिदृश्य में एक नई बहस छेड़ दी है। इस नीति का उद्देश्य उन देशों पर समान टैरिफ लगाना
है जो अमेरिकी वस्तुओं पर उच्च शुल्क लगाते हैं। यदि यह नीति व्यापक रूप से लागू होती
है, तो इसका भारत पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है, जिसमें सकारात्मक और नकारात्मक
दोनों पहलू शामिल हैं।
भारत पर संभावित
सकारात्मक प्रभाव:
1. अमेरिकी बाजार में समान अवसर: वर्तमान में, कई भारतीय वस्तुएं
अमेरिकी बाजार में प्रवेश करते समय अपेक्षाकृत उच्च टैरिफ का सामना करती हैं, जबकि
अमेरिकी वस्तुएं भारत में कम शुल्क पर आ सकती हैं। पारस्परिक टैरिफ लागू होने से, भारत
को अमेरिकी बाजार में समान प्रतिस्पर्धात्मक अवसर मिल सकते हैं। यदि अमेरिका भारतीय
आयातों पर अपने टैरिफ को कम करता है, तो भारतीय निर्यात, विशेष रूप से वस्त्र, रत्न
और आभूषण, रसायन और इंजीनियरिंग वस्तुओं जैसे क्षेत्रों में वृद्धि देखने को मिल सकती
है।
2. अनुचित व्यापार प्रथाओं पर अंकुश: पारस्परिक टैरिफ की धमकी अन्य
देशों को अपनी व्यापार नीतियों पर पुनर्विचार करने और अमेरिकी वस्तुओं के लिए अपने
बाजारों को अधिक खोलने के लिए मजबूर कर सकती है। यदि भारत भी अमेरिकी वस्तुओं पर समान
टैरिफ लगाने की स्थिति में आता है, तो यह भारत को अमेरिका के साथ व्यापार वार्ताओं
में अधिक मजबूत स्थिति प्रदान कर सकता है, जिससे अनुचित व्यापार प्रथाओं को कम करने
में मदद मिल सकती है।
3. घरेलू उद्योगों को प्रोत्साहन: कुछ मामलों में, यदि पारस्परिक
टैरिफ के कारण अमेरिकी वस्तुओं की लागत भारत में बढ़ती है, तो यह घरेलू उद्योगों के
लिए एक अप्रत्यक्ष सुरक्षा कवच प्रदान कर सकता है। इससे भारतीय कंपनियों को घरेलू बाजार
में अधिक प्रतिस्पर्धा करने और अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ाने का अवसर मिल सकता है।
4. रणनीतिक लाभ: पारस्परिक टैरिफ की नीति भारत
को अन्य व्यापार भागीदारों के साथ अपने व्यापार संबंधों को मजबूत करने के लिए प्रेरित
कर सकती है। यदि अमेरिका के साथ व्यापारिक तनाव बढ़ता है, तो भारत यूरोपीय संघ, जापान
और अन्य एशियाई देशों जैसे विकल्पों की तलाश कर सकता है, जिससे भारत की समग्र व्यापारिक
रणनीति में विविधता आ सकती है।
भारत पर संभावित
नकारात्मक प्रभाव:
1. निर्यात में कमी: यदि पारस्परिक टैरिफ के जवाब
में अमेरिका भारतीय वस्तुओं पर अपने टैरिफ बढ़ाता है, तो भारत के लिए अमेरिकी बाजार
में प्रतिस्पर्धा करना कठिन हो जाएगा, जिससे निर्यात में कमी आ सकती है। सूचना प्रौद्योगिकी
(आईटी) और फार्मास्यूटिकल्स जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़
सकता है, जो अमेरिकी बाजार पर काफी हद तक निर्भर हैं।
2. आयात लागत में वृद्धि: यदि भारत अमेरिकी वस्तुओं पर
समान टैरिफ लगाता है, तो इससे भारत में अमेरिकी उत्पादों की लागत बढ़ जाएगी। इसका असर
उपभोक्ताओं और उन उद्योगों पर पड़ सकता है जो अमेरिकी मशीनरी, प्रौद्योगिकी और अन्य
आवश्यक वस्तुओं पर निर्भर हैं। इससे मुद्रास्फीति का दबाव भी बढ़ सकता है।
3. व्यापार युद्ध का खतरा: पारस्परिक टैरिफ की नीति व्यापार
युद्ध को जन्म दे सकती है, जहां देश एक-दूसरे के उत्पादों पर लगातार टैरिफ बढ़ाते जाते
हैं। इस तरह के परिदृश्य में, वैश्विक व्यापार बाधित हो सकता है, और भारत सहित सभी
देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
4. निवेश पर प्रतिकूल प्रभाव: व्यापारिक अनिश्चितता और टैरिफ
युद्ध का खतरा विदेशी निवेशकों को भारत में निवेश करने से हतोत्साहित कर सकता है। यदि
भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक संबंध तनावपूर्ण होते हैं, तो यह भारत में प्रत्यक्ष
विदेशी निवेश (एफडीआई) के प्रवाह को कम कर सकता है।
5. डब्ल्यूटीओ नियमों का उल्लंघन: पारस्परिक टैरिफ की नीति विश्व
व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के नियमों का उल्लंघन कर सकती है, जो सदस्य देशों को गैर-भेदभावपूर्ण
व्यापार प्रथाओं का पालन करने के लिए बाध्य करते हैं। यदि अमेरिका व्यापक रूप से पारस्परिक
टैरिफ लागू करता है, तो यह वैश्विक व्यापार प्रणाली को कमजोर कर सकता है, जिसका भारत
पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
विश्लेषण:
डोनाल्ड ट्रंप की 'पारस्परिक
टैरिफ' नीति भारत के लिए एक मिश्रित बैग साबित हो सकती है। जबकि यह अमेरिकी बाजार में
समान अवसर प्राप्त करने और अनुचित व्यापार प्रथाओं पर दबाव बनाने का एक मौका प्रदान
कर सकती है। वहीं यह भारत के निर्यात को नुकसान पहुंचा सकती है, आयात लागत बढ़ा सकती
है और व्यापार युद्ध के खतरे को जन्म दे सकती है। भारत को इस स्थिति का सावधानीपूर्वक
आकलन करने और एक संतुलित प्रतिक्रिया तैयार करने की आवश्यकता होगी। उसे अमेरिका के
साथ व्यापार वार्ताओं को जारी रखना होगा, तथा अपने घरेलू उद्योगों को मजबूत करने और
अन्य व्यापारिक भागीदारों के साथ संबंधों को बढ़ावा देने पर भी ध्यान केंद्रित करना
होगा। यह नीति बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली के भविष्य पर भी सवाल उठाती है। भारत को डब्ल्यूटीओ
के ढांचे को बनाए रखने के लिए अन्य देशों के साथ मिलकर काम करना होगा।
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