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आज हम एक बेहद गंभीर विषय पर बात करेंगे—राजनीति, न्याय और भ्रष्टाचार का बढ़ता गठजोड़। क्या ये तीनों एक-दूसरे के पूरक बन चुके हैं? क्या न्यायपालिका भी अब निष्पक्ष नहीं रही? क्या जजों के विवादित फैसले और उन पर लगने वाले भ्रष्टाचार के आरोप न्याय प्रणाली की गिरती साख का संकेत हैं? और सबसे अहम सवाल—इससे आम जनता को क्या नुकसान हो रहा है? आइए, इसे विस्तार से समझते हैं।

 

राजनीति और भ्रष्टाचार का संबंध:

भारत में राजनीति और भ्रष्टाचार का गठजोड़ कोई नई बात नहीं है। सत्ता में आने के बाद कई नेता जनता की सेवा करने के बजाय अपनी तिजोरी भरने में लग जाते हैं। घोटालों की लंबी सूची इसका प्रमाण है—चाहे वह 2G स्पेक्ट्रम घोटाला हो, कोयला घोटाला हो, या हाल ही में चुनावी बॉन्ड से जुड़े विवाद।

 

राजनीति में भ्रष्टाचार इस हद तक घुस चुका है कि अब चुनाव जीतने के लिए नैतिकता और जनता की भलाई से ज्यादा पैसा और बाहुबल मायने रखता है। कई अपराधी छवि वाले नेता चुनाव जीतकर कानून बनाने वाले बन जाते हैं, जिससे कानून का मजाक बनता है।

 

न्यायपालिका की निष्पक्षता पर सवाल:

न्यायपालिका को लोकतंत्र का सबसे मजबूत स्तंभ माना जाता है, लेकिन क्या यह अब भी निष्पक्ष बनी हुई है? कई मामलों में न्याय व्यवस्था पर राजनीतिक दबाव साफ दिखता है।

 

  • कई बड़े नेताओं और उद्योगपतियों के खिलाफ मामले वर्षों तक लटके रहते हैं, लेकिन किसी आम आदमी पर कोई आरोप लगे तो तुरंत कार्रवाई हो जाती है।
  • कई बार न्यायपालिका के फैसले भी राजनीतिक समीकरणों के हिसाब से लिए जाने के आरोप लगते हैं।
  • हाल ही में कुछ जजों के ट्रांसफर और नियुक्तियों को लेकर भी सवाल उठाए गए हैं, जिससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर संदेह पैदा होता है।

 

लेकिन इससे भी ज्यादा चिंता का विषय है—कुछ जजों के भ्रष्टाचार और विवेकहीन फैसले।

 

जब जज ही संदेह के घेरे में हों:

·       जज के घर से जली हुई भारतीय करेंसी का मिलना

हाल ही में एक जज के घर से जली हुई भारतीय करेंसी के बंडल मिलने की खबर ने पूरे देश को चौंका दिया। सवाल यह उठता है कि आखिर क्यों एक न्यायाधीश के घर में नोट जलाए गए? क्या यह भ्रष्टाचार से जुड़े किसी मामले को छिपाने की कोशिश थी? जब न्याय देने वाला ही भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरा हो, तो जनता किस पर भरोसा करे?

 

·       नाबालिग लड़की के साथ जबरदस्ती करना अपराध नहीं?

एक और चौंकाने वाला मामला तब सामने आया जब एक जज ने फैसला दिया कि किसी नाबालिग लड़की के साथ जबरदस्ती करना अपराध नहीं है। यह बयान समाज में गलत संदेश देने वाला है और महिला सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करता है। अगर न्यायपालिका से इस तरह के फैसले आएंगे, तो अपराधियों के हौसले कैसे नहीं बढ़ेंगे? क्या ऐसे न्यायाधीश को अपने पद पर बने रहने का अधिकार है?

 

·       हाई कोर्ट के जजों की विवेकहीनता

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक हाई कोर्ट जज के फैसले को पलट दिया, जो कानून और न्याय के मूल सिद्धांतों के खिलाफ था। यह सिर्फ एक मामला नहीं है, बल्कि कई बार ऐसा हुआ है जब उच्च न्यायालयों के फैसले न केवल तर्कहीन पाए गए, बल्कि सुप्रीम कोर्ट को उन्हें खारिज करना पड़ा।

 

अब सवाल यह उठता है—अगर कोई हाई कोर्ट का जज विवेकहीन फैसले देता है, तो उसे उस पद पर बने रहने का अधिकार क्यों दिया जाता है? क्या ऐसे जजों की जवाबदेही तय होनी चाहिए? क्या उनके फैसलों की समीक्षा कर उन्हें बर्खास्त करने की कोई प्रणाली होनी चाहिए?

 

जनता पर प्रभाव:

  • न्याय की धीमी प्रक्रिया

जब न्यायपालिका खुद विवादों में घिर जाती है, तो आम जनता के लिए निष्पक्ष न्याय पाना मुश्किल हो जाता है।

  • लोकतंत्र की कमजोरी

जब न्यायपालिका और राजनीति के बीच सांठगांठ हो, तो यह लोकतंत्र की बुनियाद को कमजोर कर देता है।

  • भ्रष्टाचार को बढ़ावा

जब कानून के रखवाले ही गलत कामों में शामिल हों, तो समाज में भ्रष्टाचार को रोकना नामुमकिन हो जाता है।

 

समाधान क्या हो?

इस गंभीर समस्या का समाधान संभव है, लेकिन इसके लिए बड़े सुधारों की जरूरत है:

 

·       न्यायपालिका की स्वतंत्रता:

जजों की नियुक्ति और ट्रांसफर में पारदर्शिता होनी चाहिए।

·       भ्रष्ट जजों पर कड़ी कार्रवाई:

अगर किसी जज पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते हैं, तो उनकी तुरंत जांच होनी चाहिए।

·       राजनीति से अपराधियों का सफाया:

जिन नेताओं पर गंभीर आरोप हैं, उन्हें चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए।

·       जनता की जागरूकता:

जनता को समझना होगा कि उसे किन लोगों पर भरोसा करना चाहिए और किन लोगों के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए।

 

निष्कर्ष

तो दोस्तों, यह स्पष्ट है कि जब तक राजनीति, न्याय और भ्रष्टाचार का यह गठजोड़ बना रहेगा, तब तक आम आदमी को न्याय नहीं मिल पाएगा। लेकिन अगर हम जागरूक रहें, सही नेताओं को चुनें और न्यायपालिका की स्वतंत्रता की मांग करें, तो इस स्थिति को बदला जा सकता है।

 

आपका क्या विचार है? क्या राजनीति और न्यायपालिका का गठजोड़ तोड़ा जा सकता है? क्या भ्रष्टाचार में लिप्त जजों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए? अपने विचार कमेंट में जरूर बताइए। जय हिंद!

वीडियो के लिए यहाँ क्लिक करें: https://youtu.be/LzUIYxhSTkA

 

डिस्क्लेमर: "यह वीडियो/ ब्लॉग प्रिंट मीडिया और डिजिटल मीडिया से प्राप्त जानकारी के आधार पर केवल सूचना और जागरूकता के उद्देश्य से बनाया/ लिखा गया है, इसका उद्देश्य किसी व्यक्ति, संस्था या सरकार की छवि को नुकसान पहुंचाना नहीं है। हम केवल निष्पक्ष रूप से विषय की चर्चा कर रहे हैं। GPNewsBihar ऐसी खबरों की पुष्टि नहीं करता है।"