मुंबई/नई दिल्ली: महाराष्ट्र चुनाव का रिजल्ट निकले 10 दिन से अधिक
हो गया पर अभी तक मुख्यमंत्री पद पर कौन बैठेगा इसका फैसला नहीं हो पाया है। तो क्या
अब महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लगाने की तैयारी चल रही है? अब ये सवाल पक्ष और
विपक्ष दोनों के जुबान पर है। विपक्ष इस मुद्दे पर अब और अधिक मुखर होते जा रहा है
कि क्या संविधान और कानून सभी सिर्फ विपक्षी पार्टियों के लिए ही है? केंद्र के वर्तमान
सरकार ने सभी नियम कानून को ताक पर रख दिया है।
महायुति सरकार ने इस चुनाव में भारी बहुमत से जीत
हासिल की है। बीजेपी इस चुनाव में 132 सीट पर जीत दर्ज की है वहीं शिवसेना (एकनाथ शिंदे)
ने 57 और NCP (अजित पवार) ने 41 सीटें जीतीं हैं। तो नियमानुसार मुख्यमंत्री बीजेपी
का ही होना चाहिए पर एकनाथ शिंदे इसके लिए तैयार नहीं हैं। एक तरफ जहां बीजेपी और शिवसेना
में सीएम पद के लिए अभी भी खींचतान चल रही है तो वही अजित पवार ने बीजेपी को खुला समर्थन
दे दिया है। अजित पवार का कहना है कि बीजेपी जिसे चाहे मुख्यमंत्री बनाये हमारी पार्टी
को कोई एतराज नहीं है।
तो अब बड़ा सवाल ये है कि क्या महाराष्ट्र में बीजेपी
अपना सीएम नहीं बना पाएगी? क्या अब महाराष्ट्र में महायुति का मुख्यमंत्री नहीं ही
होगा और क्या अब महाराष्ट्र को संवैधानिक संकट से बचाने के लिए राष्ट्रपति शासन लगाना
ही इकलौता उपाय रह गया है? ये कुछ ऐसे सवाल हैं, जिनका जवाब तलाश करना अब जरूरी होता
जा रहा है क्योंकि बंपर जीत के 10 दिन बाद भी न तो बीजेपी खुद का सीएम बना पा रही है
और न ही वो एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनने दे रही है।
संविधान का आर्टिकल 172 में विधानसभा के बारे में
विस्तृत चर्चा की गई है। आर्टिकल 172 कहता है कि अगर किसी वजह से विधानसभा पहले भंग
न हो तो विधानसभा की पहली बैठक से अगले पांच साल तक विधानसभा का कार्यकाल होगा. इसी
आर्टिकल में ये भी लिखा है कि आपातकाल की स्थिति में विधानसभा का कार्यकाल बढ़ाया जा
सकता है लेकिन उसकी भी अवधि एक साल होगी और उसे फिर अगले 6 महीने के लिए बढ़ाया जा
सकता है.
आपको बता दें कि 26 नवंबर को ही महाराष्ट्र की
विधानसभा का कार्यकाल खत्म हो चुका है। ऐसे
में 26 नवंबर तक महाराष्ट्र को नया मुख्यमंत्री मिल जाना चाहिए था, लेकिन 26 नवंबर
को भी बीते एक हफ्ते से अधिक हो गए हैं और अब तक ना तो मुख्यमंत्री का नाम पता है और
ना ही ये पता है कि मुख्यमंत्री किस पार्टी से होगा। महायुति के अनुसार सिर्फ इतना
पता है कि 5 दिसंबर को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ होगी।
शिंदे की कभी हां, कभी ना
हालांकि, सूत्रों से पता चला है कि बीजेपी ने शिंदे
को मुख्यमंत्री पद छोड़ने के लिए मना लिया है। शिवसेना को केंद्र में कोई बड़ी जिम्मेदारी
के साथ साथ एक मंत्रालय भी देने की बात कही गई है। अब देखना ये है कि शिंदे इस बात
के लिए राजी होते हैं या नहीं। इस बीच खबर आई है कि एकनाथ शिंदे बीमार हो गए हैं। और
इस बार मामला थोड़ा गंभीर लग रहा है। शिंदे को ठाणे के एक अस्पताल में भर्ती करवाना
पड़ गया है। ऐसे में पांच तारीख को नए मुख्यमंत्री की शपथ भी अब मुश्किल में नजर आ रही
है,
संविधान कहता है कि कार्यकाल खत्म होते ही अगर
नई सरकार नहीं बनती है तो राष्ट्रपति शासन लग जाना चाहिए। व्यावहारिकता ये कहती है
कि भले ही कार्यकाल खत्म हो गया है, लेकिन महाराष्ट्र में स्थिति ऐसी नहीं है कि सरकार
का गठन ही नहीं हो सकता क्योंकि महायुति के पास बहुमत है और उसने राज्यपाल से सरकार
बनाने से इनकार भी नहीं किया है। तो राज्यपाल को भी पता है कि बहुमत है और सरकार का
गठन हो जाएगा। ऐसे में राज्यपाल को राष्ट्रपति शासन की जरूरत महसूस नहीं हो रही है।
कुल मिलाकर बात ये है कि जब तक प्रदेश में राज्यपाल
को ये न लगे कि संवैधानिक संकट है तब तक प्रदेश में राष्ट्रपति शासन नहीं लग सकता है।
साल 2019 का विधानसभा चुनाव इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। 2019 में शिवसेना और बीजेपी
का गठबंधन चुनाव जीता था। 24 अक्टूबर को चुनाव के नतीजे भी आ गए थे, लेकिन सरकार का
गठन नहीं हो पाया क्योंकि चुनाव बाद उद्धव ठाकरे ने गठबंधन तोड़ दिया था। ऐसे में जब
12 नवंबर को विधानसभा का कार्यकाल खत्म हो गया तो राज्यपाल की सिफारिश पर प्रदेश में
राष्ट्रपति शासन लग गया था, लेकिन 23 नवंबर को बीजेपी और अजित पवार के बीच बात बन गई
तो 23 नवंबर को राष्ट्रपति शासन हटाकर देवेंद्र फडणवीस को शपथ दिला दी गई थी।
हालांकि, पांच दिन बाद ही फडणवीस को इस्तीफा देना
पड़ गया था क्यूंकि 28 नवंबर को वह फ्लोर पर बहुमत साबित नहीं कर पाए थे। तो अब देखना
ये है कि राज्यपाल क्या फैसला लेते हैं। 5 दिसंबर को नए मुख्यमंत्री की शपथ करवाएंगे
या फिर ये इंतजार और लंबा होगा और महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन होगा।
क्या कहता है आर्टिकल 172
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 172 में राज्य विधानसभाओं
और विधान परिषदों से जुड़ी जानकारी दी गई है:
·
विधानसभा
का कार्यकाल पांच साल का होता है।
·
विधानसभा
की पहली बैठक के लिए तय तारीख से पांच साल तक विधानसभा बनी रहती है।
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विधानसभा
को पहले भी भंग किया जा सकता है।
·
विधान परिषद
एक सतत सदन होती है और इसे भंग नहीं किया जा सकता।
·
विधान परिषद
के एक तिहाई सदस्य हर दो साल में सेवानिवृत्त हो जाते हैं।
·
आपातकाल
की स्थिति में, संसद विधि द्वारा विधानसभा के कार्यकाल को एक साल से ज़्यादा के लिए
बढ़ा सकती है।
·
आपातकाल
की स्थिति खत्म होने के बाद, विधानसभा के कार्यकाल को छह महीने से ज़्यादा नहीं बढ़ाया
जा सकता।
·
अगर किसी
राज्य की विधानसभा को कार्यकाल पूरा होने से पहले भंग किया जाता है, तो अगली विधानसभा
के कार्यकाल को दो साल के लिए बढ़ाया या घटाया जा सकता है।
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