प्रशांत किशोर
की राजनीति पर डॉ. गौतम पाण्डेय का विश्लेषण
मैंने कई बार जनसभा में प्रशांत
किशोर को भाषण देते हुए देखा है — ज़्यादातर सोशल मीडिया पर। और मैं हमेशा सोचता था
— आख़िर ये कह क्या रहे हैं?
ना तो कभी अपनी पार्टी जन
सुराज के लिए चंदा मांगते हैं, और ना ही प्रेस कॉन्फ़्रेंस में फंडिंग को लेकर
कोई अपील करते हैं। उल्टा सवाल पूछे जाने पर साफ़ कहते हैं — हम वोट या पैसे की
राजनीति नहीं करते।
अब सवाल उठता है — अगर वोट की
राजनीति नहीं करनी है, तो फिर पार्टी क्यों बनाई?
लेकिन कुछ दिन पहले जब मैंने
धमदाहा में "बिहार बदलाव सभा" में उन्हें प्रत्यक्ष रूप से सुना,
तो मुझे पहली बार बात समझ में आई कि वो ऐसा क्यों कहते हैं।
और उस समझ का सार ये है — नकारात्मक
राजनीति।
जी हां, Negative Politics —
यानी ऐसा राजनीतिक कौशल जिसमें सामने किसी को गाली ना दी जाए, लेकिन बातों में लोगों
के मन में इतनी बेचैनी पैदा कर दी जाए कि उन्हें लगने लगे — बस अब इन्हीं को मौका
देना चाहिए।
लोगों के मन में जो असंतोष है,
उसे हवा देना — बिना किसी सीधी आलोचना के।
प्रशांत किशोर को मैंने किसी
पार्टी या नेता के खिलाफ खुलकर बोलते नहीं देखा।
वो तो लालू, नीतीश, यहां तक कि मोदी तक की तारीफ़ कर जाते हैं।
फिर भी, लोग उनके समर्थन में
उतर रहे हैं — क्यों?
क्योंकि जनता अब समझ चुकी है
कि पिछले कई दशकों में बीजेपी, जेडीयू, आरजेडी, कांग्रेस — कोई भी दल जनता से जुड़ी
मूलभूत ज़रूरतों को पूरा करने में सफल नहीं रहा।
जन सुराज से लोगों को एक नई उम्मीद दिखाई
दे रही है।
शायद इसी वजह से जनता उन्हें एक बार मौका देना चाहती है।
हालांकि, उनकी सभाओं में हज़ारों
की भीड़ आती है —
लेकिन बड़ा सवाल यही है कि क्या ये भीड़ वोट में तब्दील हो पाएगी?
इसका फैसला नवंबर में
होगा।
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