English Vs हिंदी

डॉ. गौतम पाण्डेय का विश्लेषण

पूर्णिया: देश में हिंदी भाषा को लेकर हाल ही में एक नया विवाद खड़ा हो गया है। केंद्र सरकार हिंदी को सभी सरकारी और गैर-सरकारी स्कूलों में अनिवार्य बनाने पर विचार कर रही है, जिससे दक्षिण भारत के कई राज्य असहमति जता रहे हैं। विशेष रूप से तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने इस पर कड़ा रुख अपनाया है और स्पष्ट कर दिया है कि उनके राज्य में हिंदी के लिए कोई स्थान नहीं है।

 

हिंदी के प्रति विरोध क्यों?

तमिलनाडु समेत दक्षिण भारत के कुछ राज्य हिंदी भाषा को थोपे जाने के खिलाफ हैं। उनका मानना है कि हिंदी को थोपना क्षेत्रीय भाषाओं की स्वतंत्रता और पहचान के खिलाफ है। राज्य सरकारों और क्षेत्रीय दलों का यह भी कहना है कि उनके राज्यों में तमिल, कन्नड़, तेलुगु और मलयालम जैसी भाषाओं का सांस्कृतिक महत्व अधिक है, और वे अंग्रेजी को एक संपर्क भाषा के रूप में अपनाना पसंद करते हैं।

 

इस विरोध के पीछे ऐतिहासिक कारण भी हैं। 1965 में जब भारत सरकार ने हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित करने की कोशिश की थी, तब दक्षिण भारत में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए थे। तमिलनाडु में तो इस आंदोलन ने हिंसक रूप तक ले लिया था। इसी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को देखते हुए आज भी तमिलनाडु और अन्य दक्षिण भारतीय राज्य हिंदी को अनिवार्य किए जाने के पक्ष में नहीं हैं।

 

हिंदी का समर्थन करने वालों की राय

हिंदी समर्थकों का तर्क है कि हिंदी देश की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है और इसे संपर्क भाषा के रूप में अपनाना जरूरी है। भारत के उत्तरी और मध्य राज्यों में हिंदी का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है, और कई हिंदी भाषी राज्यों के लोग अन्य राज्यों में रोज़गार और शिक्षा के लिए जाते हैं।

 

एक हिंदी समर्थक ने कहा, "अगर कोई व्यक्ति उत्तर भारत में आकर नौकरी या व्यापार करता है, तो उसे हिंदी का ज्ञान होना चाहिए। कई राज्यों में वहां की क्षेत्रीय भाषा में 10वीं पास करना अनिवार्य होता है, तो फिर हिंदी के साथ ऐसा क्यों नहीं किया जा सकता?" केंद्र सरकार से यह मांग भी की जा रही है कि देशभर में सरकारी नौकरियों के लिए हिंदी को अनिवार्य विषय बनाया जाए।

 

न्यायपालिका में भी हिंदी को लेकर विवाद

हाल ही में एक मामला चर्चा में रहा जिसमें एक हाईकोर्ट के जज ने हिंदी में बहस कर रहे एक वकील को रोक दिया क्योंकि जज को हिंदी समझ नहीं आती थी। इस घटना ने हिंदी बनाम अंग्रेजी विवाद को और हवा दे दी है।

 

कई लोगों का कहना है कि अगर कोई जज बिहार या उत्तर प्रदेश में नियुक्त किया जाता है, तो उसे हिंदी का ज्ञान होना अनिवार्य होना चाहिए। इसके अलावा, यूपीएससी जैसी परीक्षाओं में भी हिंदी को ज्यादा महत्व दिए जाने की मांग उठ रही है।

 

केंद्र सरकार का क्या रुख?

केंद्र सरकार ने अभी तक इस मुद्दे पर स्पष्ट फैसला नहीं लिया है, लेकिन हिंदी को बढ़ावा देने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न राज्यों में हिंदी भाषा शिक्षा को बढ़ाने के लिए नीतियां बनाई जा रही हैं, लेकिन यह देखना बाकी है कि दक्षिण भारत के राज्यों पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है।

 

क्या होगा आगे?

हिंदी भाषा को लेकर यह विवाद अभी और बढ़ने की संभावना है। तमिलनाडु और अन्य गैर-हिंदी भाषी राज्यों के विरोध के चलते केंद्र सरकार को इस मुद्दे पर संतुलन बनाना होगा। वहीं, हिंदी समर्थकों की मांग है कि हिंदी को पूरे देश में संपर्क भाषा के रूप में स्थापित किया जाए और सरकारी नौकरियों में इसे अनिवार्य किया जाए।

 

निष्कर्ष

हिंदी भाषा को लेकर देश में दो विपरीत विचारधाराएं मौजूद हैं—एक पक्ष इसे पूरे देश में लागू करने का समर्थन करता है, तो दूसरा इसे जबरन थोपे जाने का विरोध कर रहा है। भाषा कोई बाधा नहीं बल्कि संचार का माध्यम होनी चाहिए, और इस विवाद का हल संतुलित दृष्टिकोण अपनाने में ही निहित है। सरकार को सभी राज्यों की सांस्कृतिक और भाषाई पहचान को बनाए रखते हुए हिंदी को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाने होंगे, ताकि देश की एकता और अखंडता को बनाए रखा जा सके।