बक्सर: गंगा नदी के तीव्र कटाव ने बिहार
और उत्तर प्रदेश के भूगोल को इतना बदल दिया है कि यह सीमा विवाद का कारण बन गया। इस
परिवर्तन ने न केवल 192 गांवों की भौगोलिक स्थिति को बदला, बल्कि दशकों तक दोनों राज्यों
के बीच राजनीतिक, सामाजिक और कानूनी संघर्ष का कारण भी बना।
गंगा कटाव: समस्या की जड़
बक्सर जिले के सामने गंगा नदी
में लगभग 60 किलोमीटर तक तेज कटाव होता है। यह कटाव न केवल स्थानीय किसानों के लिए
चिंता का विषय है, बल्कि यह प्रशासनिक अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों की निष्क्रियता
को भी उजागर करता है। कुछ दशक पहले इस समस्या के समाधान के लिए प्रयास किए जाते थे,
लेकिन अब स्थिति वैसी गंभीरता से नहीं देखी जाती।
अतीत में गंगा की धारा में हुए
परिवर्तनों के कारण ब्रिटिश शासन के दौरान दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद खड़ा हो
गया था। यह विवाद इतना गहरा हो गया कि हजारों एकड़ जमीन के स्वामित्व के लिए संघर्ष
में खून-खराबा होने लगा। स्वतंत्रता के बाद भी यह विवाद खत्म नहीं हुआ और 20वीं सदी
के अंत तक दियारा क्षेत्र में हिंसा का दौर जारी रहा।
त्रिवेदी आयोग का गठन और अनुशंसा
1962 में इस विवाद को हल करने
के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जज
सीएम त्रिवेदी की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया। आयोग को गंगा और घाघरा नदी के
किनारे के 192 गांवों का सर्वेक्षण कर उनके सीमांकन का कार्य सौंपा गया।
1968 में त्रिवेदी आयोग की अनुशंसा
के आधार पर बिहार-उत्तर प्रदेश सीमा परिवर्तन अधिनियम पारित किया गया। इस अधिनियम के
तहत बिहार के 114 गांवों को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले को सौंपा गया, जबकि उत्तर प्रदेश
के 39 गांव बिहार को दिए गए।
समस्या का समाधान अधूरा क्यों?
हालांकि सीमांकन और भूमि रिकॉर्ड
का आदान-प्रदान किया गया, लेकिन विवाद तब पैदा हुआ जब बिहार सरकार ने अपने क्षेत्र
में यूपी के किसानों को रैयती अधिकार दे दिए। दूसरी ओर, यूपी सरकार ने बिहारी किसानों
को रैयती अधिकार देने से इनकार कर दिया। इस विवाद ने चार पीढ़ियों तक कानूनी मुकदमों
को जन्म दिया, लेकिन आज तक कोई स्थायी समाधान नहीं निकला।
39 गांवों का अस्तित्व समाप्त
गंगा नदी के कटाव और धारा परिवर्तन
के कारण 39 गांवों का अस्तित्व पूरी तरह से समाप्त हो गया। त्रिवेदी आयोग ने सर्वेक्षण
के दौरान केवल 153 गांवों को अस्तित्व में पाया और उसी आधार पर सीमांकन किया।
इस घटना ने यह स्पष्ट कर दिया
कि प्राकृतिक आपदाओं को नजरअंदाज करने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं। यह इतिहास की सीख
है कि इस प्रकार की समस्याओं का समाधान समय पर किया जाए, वरना यह मानवता के लिए अभिशाप
बन सकती है।
सीमांकन विवाद का भविष्य
गंगा नदी का कटाव केवल एक भूगोल
बदलने वाली प्रक्रिया नहीं, बल्कि समाज और प्रशासन के लिए एक चेतावनी भी है। सीमावर्ती
क्षेत्रों में बसे किसानों के अधिकारों की रक्षा और विवादित भूमि के समाधान के लिए
सरकारों को सक्रिय होना पड़ेगा।
इस विवाद को समाप्त करने के लिए
केवल कानूनी उपाय नहीं, बल्कि दोनों राज्यों के बीच समन्वय और गंगा नदी के कटाव को
रोकने के लिए ठोस प्रयासों की आवश्यकता है।
फोटो साभार: गूगल
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