पार्टी विरोधी
गतिविधियों पर कांग्रेस ने दिखाई सख्ती, अपमानजनक टिप्पणियों के चलते लिया बड़ा फैसला
भोपाल/नई दिल्ली: मध्य प्रदेश के वरिष्ठ नेता और
पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह को कांग्रेस पार्टी से 6 वर्षों
के लिए निष्कासित कर दिया गया है। पार्टी विरोधी गतिविधियों और शीर्ष नेताओं पर की
गई विवादित टिप्पणियों को इस फैसले की मुख्य वजह बताया गया है। पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन
खरगे के नेतृत्व में लिए गए इस निर्णय को कांग्रेस की अनुशासनात्मक नीति का स्पष्ट
संकेत माना जा रहा है।
कांग्रेस की कार्रवाई और कारण
कांग्रेस पार्टी की अनुशासन समिति ने लक्ष्मण सिंह पर गंभीर आरोपों की समीक्षा की।
इसमें राहुल गांधी, रॉबर्ट वाड्रा और उमर अब्दुल्ला पर लक्ष्मण सिंह द्वारा दिए गए
सार्वजनिक बयानों को 'अपमानजनक' और 'पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचाने वाला' बताया
गया। कांग्रेस का कहना है कि लक्ष्मण सिंह की भाषा और लहजा पार्टी की मर्यादा के खिलाफ
है, और उन्होंने बार-बार चेतावनी के बावजूद ऐसी गतिविधियाँ कीं।
क्या कहा था लक्ष्मण सिंह ने?
विवाद की जड़ 25 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद दिए
गए एक बयान में छुपी है। रॉबर्ट वाड्रा ने तब टिप्पणी की थी कि "मुसलमानों को
सड़क पर नमाज नहीं पढ़ने दी जाती, इसलिए आतंकवादियों ने हमला किया।" इस पर लक्ष्मण
सिंह ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा था:
"ये बचपना हम लोग कब तक
झेलेंगे? राहुल गांधी और रॉबर्ट वाड्रा दोनों नादान हैं। राहुल गांधी को सोच-समझकर
बोलना चाहिए, वह नेता प्रतिपक्ष हैं।"
इतना ही नहीं, लक्ष्मण सिंह ने
नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला पर भी बड़ा आरोप लगाते हुए कहा था कि "उमर
अब्दुल्ला की आतंकियों से नजदीकियां हो सकती हैं।" उन्होंने यह भी जोड़ा
कि "हमारे नेताओं को बोलने से पहले सोचने की जरूरत है।"
दिग्विजय सिंह की प्रतिक्रिया?
फिलहाल दिग्विजय सिंह ने इस मामले पर कोई सार्वजनिक टिप्पणी नहीं की है, लेकिन राजनीतिक
गलियारों में यह चर्चा तेज है कि यह घटनाक्रम उनके लिए व्यक्तिगत और राजनीतिक दोनों
ही स्तर पर असहज करने वाला है।
राजनीतिक विश्लेषण और असर
लक्ष्मण सिंह कांग्रेस के पुराने और अनुभवी नेता रहे हैं। वे छह बार विधायक रह चुके
हैं और मप्र की राजनीति में उनका नाम खासा जाना-पहचाना है। उनका निष्कासन कांग्रेस
के लिए आंतरिक असंतोष और नेतृत्व को लेकर उभरती चुनौतियों की ओर भी इशारा करता है।
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना
है कि यह निष्कासन पार्टी की अनुशासन नीति को दर्शाता है, लेकिन साथ ही यह भी सवाल
उठाता है कि क्या कांग्रेस अंदरूनी मतभेदों को सुलझाने में विफल हो रही है?
निष्कर्ष:
लक्ष्मण सिंह का निष्कासन कांग्रेस के लिए एक बड़ा कदम है, जो यह दिखाता है कि शीर्ष नेतृत्व पर की गई आलोचना पार्टी में बर्दाश्त नहीं की जाएगी। अब देखना यह होगा कि लक्ष्मण सिंह इस फैसले के बाद क्या रुख अपनाते हैं—चुप्पी साधते हैं या नई राजनीतिक राह चुनते हैं।
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