विश्लेषण

"चिराग की चुनौती: NDA की दहलीज़ पर परीक्षा"

चिराग पासवान का 2025 का चुनाव राजनीतिक अस्तित्व की परीक्षा है। एनडीए के भीतर सीटों को लेकर खींचतान, बीजेपी की नीतीश प्राथमिकता और बाहर से तेजस्वी व पीके की जन समर्थन वाली चुनौती उन्हें सीमित करती है। उनकी पार्टी के पास प्रभावी वोटबैंक है, लेकिन संगठनात्मक गहराई और स्वतंत्र जनाधार की कमी उन्हें कमजोर करती है। अगर चिराग इस बार भी 2020 की तरह 'अलग राह' चुनते हैं, तो उन्हें न केवल भाजपा का समर्थन खोना पड़ सकता है, बल्कि वे राजनीतिक रूप से हाशिए पर भी जा सकते हैं। उन्हें एक स्पष्ट, संगठित रणनीति और गठबंधन में भरोसे की ज़रूरत है।

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पटना: बिहार में 2025 विधानसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है और एलजेपी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान इस बार एनडीए के तहत सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुके हैं। लेकिन इस राजनीतिक घोषणा के बाद उनकी राह में कई बड़ी चुनौतियाँ सामने आती दिख रही हैं – एनडीए के भीतर की तकरार, और बाहर से विपक्षी ताकतों का दबाव

 

साल 2020 में चिराग ने एनडीए से अलग होकर लगभग 140 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, जिससे जेडीयू को 28 सीटों का नुकसान हुआ था। उस घटना का असर अब तक एनडीए की भीतरू राजनीति में दिखता है। इस बार भी नीतीश कुमार की जेडीयू और बीजेपी के साथ सीट-बंटवारे को लेकर खींचतान चल रही है। चिराग की 40 सीटों की मांग पर जेडीयू और बीजेपी ने 100-100 सीटों का दावा ठोक दिया है। इससे चिराग के लिए समझौते की संभावनाएँ कम होती जा रही हैं।

 

एनडीए के भीतर सम्राट चौधरी और जीतन राम मांझी जैसे नेता भी चिराग की बयानबाज़ी और आक्रामक रणनीति से असहज हैं। जेडीयू के प्रवक्ताओं ने उन पर आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को टिकट देने का आरोप तक लगाया है।

एनडीए के बाहर की चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं। तेजस्वी यादव, जो कि C-Voter के सर्वे में 36.9% समर्थन के साथ सबसे पसंदीदा मुख्यमंत्री चेहरा हैं, चिराग के लिए बड़ी बाधा बनकर उभर सकते हैं। तेजस्वी का OBC, EBC और मुस्लिम वोटबैंक पर मजबूत पकड़ है, जिससे पासवान और दलित वोटों में सेंध लग सकती है।

 

वहीं प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी, जो सभी सीटों पर चुनाव लड़ रही है, युवा और जाति-निरपेक्ष वोटरों को लक्ष्य बना रही है। PK की लोकप्रियता 17.2% तक पहुंच चुकी है, जिससे उनका प्रभाव अब केवल सियासी रणनीतिकार तक सीमित नहीं रहा।

 

विशेषज्ञों का मानना है कि बीजेपी के बिना चिराग की राजनीति अधूरी है। 2024 के लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी की 5 सीटों की जीत भी बीजेपी के समर्थन के कारण ही संभव हो पाई थी। बीजेपी ने स्पष्ट कर दिया है कि वह नीतीश कुमार को सीएम फेस मान रही है, जिससे चिराग की महत्वाकांक्षाएं सीमित हो सकती हैं।

 

फिर भी चिराग पासवान समुदाय में मजबूत पकड़, और अपने “बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट” अभियान के जरिए खुद को राजनीतिक केंद्र में बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन सीट बंटवारा, गठबंधन की प्राथमिकताएं और तेजस्वी-PK की मजबूती मिलकर उन्हें एक कठिन मोड़ पर ला खड़ा कर रही हैं।