नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी
ने गीता और नाट्यशास्त्र को यूनेस्को के मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में शामिल किए
जाने पर खुशी जताई है। उन्होंने इस उपलब्धि को दुनिया भर में हर भारतीय के लिए गर्व
का क्षण बताया।
प्रधानमंत्री ने अपने एक्स अकाउंट पर लिखा- गीता और नाट्यशास्त्र को यूनेस्को के मेमोरी
ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में शामिल किया जाना हमारे शाश्वत ज्ञान और समृद्ध संस्कृति को
वैश्विक मान्यता प्रदान किया जाना है। गीता और नाट्यशास्त्र ने सदियों से सभ्यता और
चेतना का पोषण किया है।
इससे पहले केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने एक्स पर गीता
और नाट्यशास्त्र को यूनेस्को के मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में शामिल किए जाने की
जानकारी साझा की थी।
गीता और नाट्यशास्त्र को यूनेस्को
की मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड में शामिल कर लिया गया है। यह वैश्विक मान्यता भारत की दस्तावेजी
विरासत में एक निर्णायक मील का पत्थर है।
गीता और नाट्यशास्त्र को वैश्विक मान्यता, भारत की दस्तावेजी विरासत में एक निर्णायक
मील का पत्थर
शुक्रवार को इस उपलब्धि पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए अंतर्राष्ट्रीय सलाहकार समिति
– यूनेस्को मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड के सदस्य प्रोफेसर (डॉ.) रमेश चंद्र गौर ने कहा कि यह
भारत के लिए गौरवपूर्ण और ऐतिहासिक क्षण है क्योंकि गीता और भरत मुनि के नाट्यशास्त्र
को आधिकारिक तौर पर यूनेस्को के प्रतिष्ठित मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में अंकित किया
गया है। ये दो आधारभूत ग्रंथ अब इस वर्ष मान्यता प्राप्त 74 नई प्रविष्टियों में शामिल
हैं, जिससे वैश्विक स्तर पर शिलालेखों की कुल संख्या 570 हो गई है।
उन्होंने कहा कि गीता, एक कालातीत दार्शनिक और आध्यात्मिक मार्गदर्शक है, जिसने दुनिया
भर में नैतिक विचार, नेतृत्व और व्यक्तिगत परिवर्तन को आकार दिया है। लगभग 80 भाषाओं
में अनुवादित, यह विद्वानों, साधकों और निर्णय लेने वालों के साथ समान रूप से प्रतिध्वनित
होता रहता है।
डॉ रमेश चंद्र गौर ने बताया कि नाट्यशास्त्र, प्रदर्शन, सौंदर्यशास्त्र और शास्त्रीय
कलाओं पर एक अद्वितीय ग्रंथ है, जो रंगमंच और प्रदर्शन परंपराओं पर सबसे व्यापक दस्तावेजों
में से एक है। भारतीय शास्त्रीय नृत्य, नाटक और संगीत पर इसका प्रभाव गहरा है, और वैश्विक
प्रदर्शन सिद्धांत के लिए इसकी प्रासंगिकता स्थायी बनी हुई है। इन अतिरिक्त प्रविष्टियों
के साथ, भारत के पास अब अंतर्राष्ट्रीय रजिस्टर में 14 शिलालेख हैं - जो हमारी सभ्यतागत
ज्ञान प्रणालियों की गहराई, निरंतरता और वैश्विक महत्व का प्रमाण है।
उन्होंने कहा कि यह उपलब्धि सबसे महत्वपूर्ण मील के पत्थरों में से एक है। भारत की
बौद्धिक और सांस्कृतिक विरासत की वैश्विक मान्यता में योगदान देना - जिसमें रामचरितमानस,
श्रीमद्भगवद्गीता, नाट्यशास्त्र और पंचतंत्र जैसे महाकाव्य और क्लासिक्स शामिल हैं
- एक सम्मान और एक गहरी जिम्मेदारी दोनों है। ये मान्यताएँ न केवल प्रतीकात्मक जीत
हैं बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए स्थायी विरासत हैं।
उल्लेखनीय है कि नाटकों के संबंध में शास्त्रीय जानकारी को नाट्यशास्त्र कहते हैं।
इस जानकारी का सबसे पुराना ग्रंथ भी नाट्यशास्त्र के नाम से जाना जाता है जिसके रचयिता
भरत मुनि थे। भरत मुनि का जीवनकाल 400 ईसापूर्व से 100 ई के मध्य किसी समय माना जाता
है।
महाभारत के युद्ध से ठीक पहले भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिया वह श्रीमद्भगवद्गीता
के नाम से प्रसिद्ध है। यह महाभारत के भीष्मपर्व का अङ्ग है। गीता में 18 अध्याय और
700 श्लोक हैं। गीता की गणना प्रस्थानत्रयी में की जाती है, जिसमें उपनिषद् और ब्रह्मसूत्र
भी सम्मिलित हैं। भारतीय परम्परा के अनुसार गीता का स्थान वही है जो उपनिषद और धर्मसूत्रों
का है।हिस
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