‘ध्रुव उद्यान’ पूर्णिया का सजीव चित्रण - ज्यादा है, थोड़े की जरूरत है: 


परिचय:

पूर्णिया का सबसे बड़ा और प्रसिद्ध पार्क न केवल प्राकृतिक सौंदर्य का खजाना है, बल्कि यह यहाँ के लोगों की सुबह की दिनचर्या का अभिन्न हिस्सा भी है। हर सुबह यहाँ का वातावरण जीवंत और प्रेरणादायक होता है। उद्यान में आने वाले लोग इसे केवल घूमने की जगह नहीं, बल्कि आपसी मेलजोल, सेहतमंद जीवनशैली और हंसी-खुशी के पल साझा करने का माध्यम मानते हैं।

 

प्रकृति का अनमोल खजाना:

हरी-भरी घास, रंग-बिरंगे फूल, और शांत वातावरण इस पार्क को खास बनाते हैं। यहाँ की हरी घास पर नंगे पाँव चलने से स्वास्थ्य लाभ होते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे रक्तचाप नियंत्रित होता है, आँखों की रोशनी बेहतर होती है, और मानसिक शांति मिलती है। सुबह-सुबह यहाँ की ताज़ी हवा और चिड़ियों की चहचहाहट मन को एक नई ऊर्जा से भर देती है।

 

जीवन की झलक:

पार्क का वाकिंग ट्रैक हमेशा उत्साही लोगों से भरा रहता है। कुछ लोग अपनी सेहत सुधारने के लिए दौड़ लगाते हैं, तो कुछ पैदल चलने में विश्वास रखते हैं। यहाँ बच्चे झूलों और अन्य खेलों में मग्न रहते हैं, जबकि बड़े लोग अपने व्यायाम में तल्लीन होते हैं।

 

गॉसिप का केंद्र:

यह पार्क केवल व्यायाम या सैर के लिए ही नहीं, बल्कि सामाजिक बातचीत के लिए भी प्रसिद्ध है। यहाँ लोग आपस में अपने सुख-दुःख साझा करते हैं। बीते दिन की घटनाओं पर चर्चा करते हैं और दोस्ती की नई कहानियाँ लिखते हैं। यहाँ का माहौल हर किसी के चेहरे पर मुस्कान लाने में सक्षम है।

 

एक सुबह की कहानी:

मैंने एक दिन पार्क घूमने का निर्णय लिया, लेकिन जब पहुँचा तो वह लगभग खाली हो चुका था। अगले दिन सुबह जल्दी जाने का निश्चय किया। हालांकि, उस दिन भी मैं समय पर नहीं पहुँच सका और पार्क में कुछ ही लोग बचे थे। उनमें से एक ग्रुप से बात-चीत का मौका मिला।

 

व्यवस्था पर चर्चा:

मैंने उस ग्रुप से इस पार्क की व्यवस्था के बारे में पूछा। उन्होंने बताया कि पार्क की साफ-सफाई और सुरक्षा के लिए प्रशासन काफी प्रयासरत है। हालांकि, कुछ जगहों पर रख-रखाव की आवश्यकता महसूस होती है।

 

निष्कर्ष:

पूर्णिया का यह उद्यान न केवल प्राकृतिक सौंदर्य का प्रतीक है, बल्कि यह लोगों को जोड़ने और जीवन की सकारात्मक ऊर्जा से भरने का केंद्र भी है। इस पार्क की हर सुबह एक नई कहानी सुनाती है और इसे पूर्णिया का हृदयस्थल बनाती है।

(फोटो: डॉ. गौतम पाण्डेय)

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